एकांतसंगी / रामनरेश त्रिपाठी

आशा सुख शांति की दिखाई पड़ती है नहीं जम रहे शोक हम दुख से सहम रहे। भूख गई प्यास गई नींद फिर आई नहीं जीवन के साथी कौन जाने कहाँ थम रहे॥ कौन विपदा में सुधि लेता है किसी की हाय! माना अपना था जिन्हें वे तो निरे भ्रम रहे। एक बस हम रहे, और… Continue reading एकांतसंगी / रामनरेश त्रिपाठी

आँसू / रामनरेश त्रिपाठी

आँखों के रतन विरही के मूलधन सुख-शांति के सहायक सखा हैं प्रेममय के। करुणा के कोमल कुमार हैं ये पीड़ितों की नीरव पुकार हैं वकील हैं विनय के॥ दीनों के सहारे शिशुओं के प्राणप्यारे ऐसे साथी नहीं कोई जग में है कुसमय के। छेड़ो मत, निकल पड़ेंगे, कह देंगे, इन आँसुओं के पास इतिहास हैं… Continue reading आँसू / रामनरेश त्रिपाठी

स्वतंत्रता का दीपक / रामनरेश त्रिपाठी

अत्याचार-पीड़ितों की आशा-लता आँसुओं से सींचते हैं वीर दुख याद कर रोते हैं। पथी के पदों की चल सम देह गेह का विचार झाड़ चित्त से प्रवृत्त तब होते हैं॥ बोते रणखेत में हैं शीश वे सहर्ष जिसे देश है रखाता जागता वे पड़े सोते हैं। जग में उजाला करने को निज शोणित से दीपक… Continue reading स्वतंत्रता का दीपक / रामनरेश त्रिपाठी

आश्चर्य / रामनरेश त्रिपाठी

बार बार उचक उचक लहरों में सिंधु देखता किसे है बड़ी गहरी लगन से। जाता है सवेरे प्रति दिवस कहाँ समीर, राज-कर लेकर सुरभि का सुमन से? कौन है? कहाँ है? वह जिसकी उतारते हैं रवि शशि तारागण आरती गगन से? दीप पाके बुद्धि का अँधेरे पथ में मनुष्य पूछता नहीं क्यों एक बार निज… Continue reading आश्चर्य / रामनरेश त्रिपाठी

मित्र-महत्व / रामनरेश त्रिपाठी

(१) कर समान सदैव शरीर का, पलक तुल्य विलोचन बंधु का। प्रिय सदा करता अविवाद जो, सुहृद है वह सत्तम लोक में॥ (२) हृदय को अपने प्रियमित्र के, हृदय-सा नित जो जन जानता। वह सुभूषण मानव-जाति का, सुहृद है जिसमें न दुराव है॥ (३) व्यसन, उत्सव, हर्ष, विनोद में, विपद, विप्लव, द्रोह, दुकाल में। मनुज… Continue reading मित्र-महत्व / रामनरेश त्रिपाठी

सज्जन / रामनरेश त्रिपाठी

(१) चिरकृतज्ञ, सदा उपकार में, निरत पुण्यचरित्र अनेक हैं। परहितोद्यत स्वार्थ बिना कहीं, विरल मानव है इस लोक में॥ (२) सहज तत्परता शुभ-कर्म में विनयिता छलहीन वदान्यता। पर-अनिंदकता गुण-ग्राहिता, पुरुष-पुंगव के शुभ चिह्न हैं॥ (३) निज बड़प्पन की सुन के कथा, सकुचता जिसका चित चारु है। विकसता सुन के परकीर्ति है, जगत में वह सज्जन… Continue reading सज्जन / रामनरेश त्रिपाठी

पाँच सूचनाएँ / रामनरेश त्रिपाठी

(१) संदेहों में ग्रस्त प्रेम-सा अस्त हुआ दिनकर था। विरहोन्माद समान चंद्र का उदय बड़ा सुखकर था॥ एक वृहत संगीत-महोत्सव अभी समाप्त हुआ था। मन को मोद और रसना को कलरव प्राप्त हुआ था॥ (२) साबुन और तेल से धोए लिपे-पुते चमकीले। मोंछों को अनेक कट-छँट से चित्रित परम सजीले॥ मुख-मंडल रूपी परदों में भिन्न-भिन्न… Continue reading पाँच सूचनाएँ / रामनरेश त्रिपाठी

विधवा का दर्पण / रामनरेश त्रिपाठी

(१) एक आले में दर्पण एक, किसी प्रणयी के सुख का सगा। किसी के प्रियतम का स्मृति-चिह्न, किन्हीं सुंदर हाथों का रखा॥ धूल की चादर से मुँह ढाँक, पड़ा था भार लिए मनका। मूक भाषा में हाहाकार, मचा था उसके क्रंदन का॥ (२) दीमकों ने उसके सब ओर, कोरकर अपनी मनोव्यथा। बना दी थी उस… Continue reading विधवा का दर्पण / रामनरेश त्रिपाठी

मातृ-भूमि की जय / रामनरेश त्रिपाठी

ऐ मातृभूमि! तेरी जय हो सदा विजय हो। प्रत्येक भक्त तेरा सुख-शांति-कांतिमय हो॥ अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में। संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो॥ तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो। तेरी प्रसन्नता ही आनंद का विषय हो॥ वह भक्ति दे कि सुख में तुझको कभी न भूलें। वह… Continue reading मातृ-भूमि की जय / रामनरेश त्रिपाठी

वह देश कौन सा है / रामनरेश त्रिपाठी

मन-मोहिनी प्रकृति की गोद में जो बसा है। सुख-स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है? जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है। जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है? नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं। सींचा हुआ सलोना वह देश कौन-सा है? जिसके बड़े रसीले फल, कंद, नाज, मेवे। सब अंग में सजे… Continue reading वह देश कौन सा है / रामनरेश त्रिपाठी