देख ली हमने मसूरी / रामनरेश त्रिपाठी

देख ली हमने मसूरी, मिट गई है साध मन की, स्वर्ग आ पहुँचे बिना तप, देख ली यह शक्ति धन की। प्राकृतिक सौंदर्य इसका, देखकर जी चाहता है, बस, यहीं बस जायँ पंक्षी बन, न याद आए वतन की। चोटियों तक पर्वतों पर लद रहीं हरियालियाँ हैं, मोतियों के हार-सी सड़कें गले उनके पड़ी हैं।… Continue reading देख ली हमने मसूरी / रामनरेश त्रिपाठी

दोष-दर्शन / रामनरेश त्रिपाठी

(१) किसी के दोष जब कहने लगो, तब न तुम खुद दोष अपने भूल जाना। किसी का घर अगर है काँच का तो, उसे क्यों चाहिए ढेले चलाना? (२) अगर धंधा नहीं इसके सिवा कुछ कि औरों के गुनाहों को गिनाओ। सुधारों की जरूरत है तुम्हें तो शुरू घर से करो क्यों दूर जाओ? (३)… Continue reading दोष-दर्शन / रामनरेश त्रिपाठी

संसार-दर्पण / रामनरेश त्रिपाठी

आदमी ने एक बनवाया महल था शानदार। काँच अंदर की तरफ उसमें जड़े थे बेशुमार॥ एक कुत्ता जा फँसा उसमें अचानक एक बार। देखते ही सैकड़ों कुत्ते हुआ वह बेकरार॥ वह समझता था उसे वे घूरते हैं घेरकर। क्योंकि खुद था देखता आँखें तरेर-तरेरकर॥ वह न था कमजोर दिल का बल्कि रखता था दिमाग। छू… Continue reading संसार-दर्पण / रामनरेश त्रिपाठी

किमाश्चर्यमतः परम / रामनरेश त्रिपाठी

कोई ऐसा पाप नहीं है, जो करने से बचा हुआ हो, फिर भी हम करते रहते हैं। कोई ऐसा झूठ नहीं है, जो कहने से शेष रहा हो, फिर भी हम कहते रहते हैं॥ कोई ऐसी गाँठ नहीं है, जो अब तक बाँधी न गई हो। फिर भी हम बाँधा करते हैं॥ कोई निंदा रह… Continue reading किमाश्चर्यमतः परम / रामनरेश त्रिपाठी

स्वप्नों में तैर रहा हूँ / रामनरेश त्रिपाठी

स्वप्नों में तैर रहा हूँ, सुख क्या है इस जीवन में। यदि एक किसी प्रियतम का अनुराग नहीं है मन में। यदि विरह नहीं अंतर में है क्या आनंद मिलन में। उठती ही यदि न तरंगे, रस क्या है उस यौवन में।

शारद तरंगिणी / रामनरेश त्रिपाठी

(१) अशनि-पात, भयानक गर्जना, विषम वात, झड़ी दिन रात की। मिट गई, दिन पावस के गए शरद है अब शांत सुहावना। (२) अनिल-सेवन को दिन एक मैं नगर से तटिनी-तट को चला। सरस रागमयी खग-वृंद की सुखद शीतल सुंदर साँझ थी। (३) गगन-मंडल निर्मल नील था त्रिविध वायु-प्रवाह मनोज्ञ था। मृदुल थी सरिता कलनादिनी मुदित… Continue reading शारद तरंगिणी / रामनरेश त्रिपाठी

स्मृति / मानसी / रामनरेश त्रिपाठी

सुंदर सदन सुखदायक वही है, जहाँ तरु के तले तू प्रिए! करती निवास है, नंदन वही है, अमरावती वही है, वही खेलता बसंत, जहाँ तेरा मद हास है। तेरी याद ही में मेरे प्राण जी रहे हैं, मेरे जीवन का ध्येय तेरे प्रेम का विकास है, तेरी मंजु मूर्ति मेरे मन में बसी है, मन… Continue reading स्मृति / मानसी / रामनरेश त्रिपाठी

जब मैं अति विकल खड़ा था / रामनरेश त्रिपाठी

जब मैं अति विकल खड़ा था इस जीवन के घन वन में। अगम अपार चतुर्दिक तम था, न थीं दिशाएँ केवल भ्रम था, साथी एक निरंतर श्रम था, या था पथ निर्जन में। इस जीवन के घन वन में॥ आकर कौन हँस गया तम में, अमित मिठास भर गया श्रम में, पथ है, किंतु प्रकाश… Continue reading जब मैं अति विकल खड़ा था / रामनरेश त्रिपाठी

हिंदू विश्वविद्यालय / रामनरेश त्रिपाठी

जीवन का स्रोत है प्रभा से ओत-प्रोत यह, परम पवित्र भारती की राजधानी है। देश की स्वतंत्रता का बीज है उदीयमान, हिंदू सभ्यता की एक परम निशानी है॥ ऋषि-मुनियों की महिमा का महाकेंद्र यह जिसमें स्वतंत्रता की साधना समानी है। भारत की भूमि पर हिंदू-विश्वद्यालय मालवीयजी के देश-प्रेम की कहानी है॥

जागरण / रामनरेश त्रिपाठी

(१) जाग रण! जाग, निज राग भर त्याग में विश्व के जागरण का तु ही चिह्न है। सृष्टि परिणाम है घोर संघर्ष का शांति तो मृत्यु का एक उपनाम है॥ (२) श्वास प्रश्वास इस देह के संग ही जन्म ले नित्य के यात्रियों की तरह। लक्ष्य की ओर दिन रात गतिवान है जानता कौन है… Continue reading जागरण / रामनरेश त्रिपाठी