प्रेम-च्यार / ओम नागर

प्रेम- आंख की कोर पे धर्यो एक सुपनो ज्ये रोज आंसू की गंगा में करै छै अस्नान अर निखर जावै छै दूणो।

प्रेम-तीन / ओम नागर

प्रेम- साचो सुमिरण राधे-कृष्ण राधे-श्याम राधे-मोहन सीता-राम हीर-रांझा लैला-मजनूं तूं अर म्हूं म्हूं अर तूं।

प्रेम-दोय / ओम नागर

प्रेम- दिवलां कै ओळी-दोळी तीतर्यां की फरक्यां व्हां तांई ज्यां तांई संदी बळ’र न्हं हो जावै भसम।

प्रेम-एक / ओम नागर

प्रेम- होवै तो होज्यां न्हं होवै तो न्हं होवै प्रेम के सामै सब बेबस।

जद बी मांडबा बैठूं छूं कविता / ओम नागर

जद बी मांडबा बैठूं छूं कविता घर का अंधेरे घप्प खूण्यां में थारा ऊजळा अणग्यारा की तोल पाड़ द्ये छै टमटमाती दो आंख्यां का हीरा की चमक। अर म्हूं धोळा कागद पे खूण्यां को अंधेरो ल्ये थारी आंख्यां का हीरां की चमक कै भरोसै मांड द्यूं छूं कविता की भैंत का दो-च्यार कैरक-भैरक आखर। चाहूं… Continue reading जद बी मांडबा बैठूं छूं कविता / ओम नागर

थारो बस्वास / ओम नागर

सतूळ की नांई कतनो बैगो ढसड़ जावै छै थारो बस्वास बाणियां की दुकान पै मिलतौ हो तो कदी को धर देतो थारी छाला पड़ी हथेळी पै दो मुट्ठी बस्वास। बाळू का घर की नांई पग हटता ईं कण-कण को हो जावै छै थारो बस्वास खुद आपणै हाथां आभै पै ऊलाळ द्ये छै तू भींत, देहळ… Continue reading थारो बस्वास / ओम नागर

उडीक / ओम नागर

सूरज उग ढळग्यों/आंथग्यो जाणै कतनी बेर। पोवणी की नांई तपबा लाग’गी धरणी जेठ की भरा-भर दुपैरी मं भर्रणाया बादळां की नांई जी गैल पै रूस’र चली’गी छी तू। ऊं गैल पै मन की रीती छांगळ ल्यां ऊंभौ छूं हाल बी थंई उडीकता।

लैरा-लैरा / ओम नागर

तू धार लेती तो यूं धरकार न्हं होतो जमारो। ठूंठ का माथा पै फूट्याती दो तीत्याँ हथैली की लकीरां सूं नराळी न्हं होती भाग की गाथा। तू बच्यार लेती तो यूँ न्हं ढसड़ती चौमासा मं भींत। घर-आंगणा का मांडण्यां पै न्हं फरतौ पाणी पछीत पै मंण्डी मोरड़ी न्हं निगळती हीरां को हार। ज्यों दो पग… Continue reading लैरा-लैरा / ओम नागर

पतवाणों / ओम नागर

लूंठां सूं लूंठा दरजी कै बी बूता मं कोई न्हं परेम को असल पतवाणो ले लेबो। छणीक होवै छै परेम की काया को दरसाव ज्यें केई नै दीखता सतां बी न्हं दीखै न्हं स्वाहै कोई नै फूटी आंख। आपणा-आपणा फीता सूं लेबो चाह्वै छै सगळां नांळा-नांळा पतवाणा उद्धवों कतनो ई फरल्ये भापड़ो गुरत की फोटळी… Continue reading पतवाणों / ओम नागर

हलौळ / ओम नागर

अस्यां तो कस्यां हो सकै छै कै थनै क्है दी अर म्हनै मान ली सांच कै कोई न्हं अब ई कराड़ सूं ऊं कराड़ कै बीचै ढोबो भरियो पाणी। कै बालपणा मं थरप्यां नद्दी की बांळू का घर-ऊसारां ढसड़ग्यां बखत की बाळ सूं कै नद्दी का पेट मं न्हं र्ही अब कोई झरण। होबा मं… Continue reading हलौळ / ओम नागर