लैरा-लैरा / ओम नागर

तू धार लेती तो
यूं धरकार न्हं होतो जमारो।

ठूंठ का माथा पै फूट्याती
दो तीत्याँ
हथैली की लकीरां सूं
नराळी न्हं होती
भाग की गाथा।

तू बच्यार लेती तो
यूँ न्हं ढसड़ती चौमासा मं भींत।

घर-आंगणा का मांडण्यां पै
न्हं फरतौ पाणी
पछीत पै मंण्डी मोरड़ी
न्हं निगळती हीरां को हार।

ज्यों दो पग धर लेती तू
लैरा-लैरा।

तो अतनौ बैगो न्हं ढसड़तौ
सांसा को सतूळ
सुळझातौ
लैंटा मं उळझी लूगड़ी
भल्याईं
धसूळ्यां सूं भर जाता म्हारा हाथ।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *