Ishwar Dutt Mathur Archive
रेत के समन्दर में सैलाब आया है न जाने आज ये कैसा ख़्वाब आया है दूर तक साँय-साँय-सी बजती थी शहनाई जहाँ वहीं लहरों ने मल्हार आज गाया है । अजनबी खुद परछाई से भी डरता था जहॉं वहीं आइना …
दु:ख में मुझको जीने का अरमान था सुख आया जीवन में ऐसे लेकिन मैं कंगाल था । लक्ष्य नहीं था, दिशा नहीं थी लेकिन बढ़ते ही जाना था नहीं सूझता था मुझको कुछ अपनी ही धुन में गाता था । …
अनाम रिश्तों में कोई दर्द कैसे सहता है, खून के बाद नसों में पानी जैसा बहता है । जरा सी ठेस से दिल में दरार आ जाती है, बादे सब भूल के वो अजनबी-सा रहता है । खुलूस-ए दिल में …
पंछी उड़ता डोले है आकाश में डोल- डोल थक जाए ये तन जरत दिया मन आस में पंछी उड़ता डोले है आकाश में । उषा की वेला में पंछी अपने पंख पसार उड़ा गगन चूम लूँ, सूरज मेरा, मन में …
उफनती लहर ने पूछा समन्दर के किनारे से निस्तेज से क्यूँ हो शान्त मन में क्या है तुम्हारे । समेटे हूँ अथाह सागर तीखा, पर गरजता है । छल, दम्भ इसका कोई न जाना मैं शान्त, नीरव और निस्तेज-सा बेहारल, …
उजाले के समन्दर में गोते लगाकर मैंने अंधियारे मन को रोते देखा । जगमगाहट से लबरेज़ उस हवेली का हर कोना फटे-हाल भिखारी-सा, सजा-धजा-सा था । पर, मौन, नि:शब्द, डरा-सहमा कातर निगाहों से अपनी बेबसी कहता । थका देने वाला …
हाँ, ये मन प्यासा कुआँ है मन अंधा कुआँ है । मन एक ऐसा जुआ है जो सब कुछ जीत कर भी अतृप्त ही रहता है । जिसकी अभिलाषाओं का पार नहीं । ये न मेरी बेबसी देखता है न …
यह कैसी शाम है जो ठहर-सी गई है यह कैसी शाम है जो देख रही है मायूस नज़रों से । आज क्या हो गया है इन्हें मेरे मन की तरह हवाओं को, सुगन्धों को और दिशाओं को पक्षघात-सा क्यों हो …
एक मोटा चूहा मेरी ज़िन्द़गी को बार-बार कुतर रहा है अपने पैने दाँतों से । उसने मेरी ज़िन्दगी की डायरी को कुतर-कुतर के अपनी भटकती ज़िन्दगी का बदला लेना चाहा । उसकी मांग है कि आदमी की तरह उसके जीवन …
भाव बहुत हैं, बेभाव है, पर उनका क्या करूँ तुम मुझे कहते हो लिखो, पर मैं लिखूँ किस पर समाज के खोखलेपन पर लोगों के अमानुषिक व्यवहार पर या अपने छिछोरेपन पर लिखने को कलम उठाता हूँ तो सामने नज़र …