या रब मेरे नसीब में अक्ल-ए-हलाल हो खाने को क़ोरमा हो खिलाने को दाल हो ले कर बरात कौन सुपर हाईवे पे जाए ऐसी भी क्या ख़ुशी के सड़क पर विसाल हो जल्दी में मुँह से लफ़्ज़ जमालो निकल गया कहना ये चाहता था के तुम मह-जमाल हो औरत को चाहिए के अदालत का रूख… Continue reading या रब मेरे नसीब में अक्ल-ए-हलाल हो / दिलावर ‘फ़िगार’
Category: Hindi-Urdu Poets
वो शख़्स कभी जिस ने मेरा घर नहीं देखा / दिलावर ‘फ़िगार’
वो शख़्स कभी जिस ने मेरा घर नहीं देखा उस शख़्स को मैं ने कभी घर पर नहीं देखा क्या देखोगे हाल-ए-दिल-बर्बाद के तुम ने कर्फ़्यू में मेरे शहर का मंज़र नहीं देखा जाँ देने को पहुँचे थे सभी तेरी गली में भागे तो किसी ने भी पलट कर नहीं देखा दाढ़ी तेरे चेहरे पे… Continue reading वो शख़्स कभी जिस ने मेरा घर नहीं देखा / दिलावर ‘फ़िगार’
उट्ठी नहीं है शहर से रस्म-ए-वफा अभी / दिलावर ‘फ़िगार’
उट्ठी नहीं है शहर से रस्म-ए-वफा अभी बज़्म-ए-सुख़न के सद्र हैं हाशिम रज़ा अभी साहब ये चाहते हैं मैं हर हुक्म पर कहूँ बेहतर दुरूस्त ख़ूब मुनासिब बजा अभी उस दर पे मुझ को देख के दर-बाँ ने ये कहा ठहरों के होने वाली है फातिहा अभी इस तरह में ग़ज़ल कोई दुश्वार तो नहीं… Continue reading उट्ठी नहीं है शहर से रस्म-ए-वफा अभी / दिलावर ‘फ़िगार’
शोर से बच्चों के घबराते हैं घर पर और हम / दिलावर ‘फ़िगार’
शोर से बच्चों के घबराते हैं घर पर और हम वरना ख़ुद ही सोचिए साहब के दफ़्तर और हम तू तो घर में सो रहा है यार तुझ को क्या ख़बर गेट पर ज़ख्मी पड़े हैं गेट-कीपर और हम है जगह दिल में तो इक घर में गुज़ारा करते हैं आठ बच्चे एक बेगम चार… Continue reading शोर से बच्चों के घबराते हैं घर पर और हम / दिलावर ‘फ़िगार’
शादी में ख़त में जो ख़ला याद आ गया / दिलावर ‘फ़िगार’
शादी में ख़त में जो ख़ला याद आ गया बिल्कुल ग़लत लिखा था पता याद आ गया जूते के इंतिख़ाब को मस्जिद में जब गए वो जूतियाँ पडीं के ख़ुदा याद आ गया उस शोख़ के वलीमे में खा कर चिकन पुलाव कनकी के चावलों का मज़ा याद आ गया मतला पढ़ा जो उस ने… Continue reading शादी में ख़त में जो ख़ला याद आ गया / दिलावर ‘फ़िगार’
शाएर से शेर सुनिए तो मिस्रा उठाइए / दिलावर ‘फ़िगार’
शाएर से शेर सुनिए तो मिस्रा उठाइए इक बार अगर न उठे दोबारा उठाइए कोई किसी का लाश उठाता नहीं यहाँ अब ख़ुद ही अपना अपना जनाज़ा उठाइए अग़वा ही करना था तो कोई कम थे लख-पति किस ने कहा था रोड से कंगला उठाइए कोई क़दम उठाना है तो राह-ए-शौक़ में अगला क़दम न… Continue reading शाएर से शेर सुनिए तो मिस्रा उठाइए / दिलावर ‘फ़िगार’
कल चौदहवीं की रात थी आबाद था कमरा तेरा / दिलावर ‘फ़िगार’
कल चौदहवीं की रात थी आबाद था कमरा तेरा होती रही दिन-ताक-दिन बजता रहा तबला तेरा शौहर शनासा आशना हम-साया आशिक़ नामा-बर हाज़िर था तेरी बज़्म में हर चाहने वाला तेरा आशिक़ है जितने दीदा-वर तू सब का मंजूर-ए-नज़र नत्था तेरा फ़ज्जा तेरा ऐरा तेरा ग़ैरा तेरा इक शख़्स आया बज़्म में जैसे सिपाही रज़्म… Continue reading कल चौदहवीं की रात थी आबाद था कमरा तेरा / दिलावर ‘फ़िगार’
हुस्न पर ऐतबार हद कर दी / दिलावर ‘फ़िगार’
हुस्न पर ऐतबार हद कर दी आप ने भी ‘फिगार’ हद कर दी आदमी शाहकार-ए-फितरत है मेरे परवर-दिगार हद कर दी शाम-ए-ग़म सुब्ह-ए-हश्र तक पहुँची ऐ शब-ए-इंतिज़ार हद कर दी एक शादी तो ठीक है लेकिन एक दो तीन चार हद कर दी ज़ौजा और रिक्शा में अरे तौबा दाश्ता और ब-कर हद कर दी… Continue reading हुस्न पर ऐतबार हद कर दी / दिलावर ‘फ़िगार’
अदब को जिंस-ए-बाज़ारी न करना / दिलावर ‘फ़िगार’
अदब को जिंस-ए-बाज़ारी न करना ग़ज़ल के साथ बद-कारी न करना सिवा-ए-जाँ यहाँ हर शय गिराँ है कराची में ख़रीदारी न करना जो हल्दी से मोहब्बत है तो यारो किसी चूहे को पंसारी न करना फ़कत क़ौव्वाल समझे इस का मतलब ग़ज़ल को इतना मेयारी न करना जो अख़्तर हैं यहाँ उन में ख़ुदा-या किसी… Continue reading अदब को जिंस-ए-बाज़ारी न करना / दिलावर ‘फ़िगार’
ज़ख़्म / फ़रहत एहसास
तब तक तुम्हारे चेहरे पर ख़ून की रवानी है मेरी आँखों के ज़ख़्म ताज़ा रहेंगे