पेश-ओ-पस / फ़रहत एहसास

उसके आगे सन्नाटा है वो काला है उसके पीछे इक चेहरा है वो प्यारा है वो अपनी पीठ पर अपनी आँखें बांधे जाता है एक पाँव आगे की जानिब दूसरा पीछे जाता है

गुनाहों की धुँद / फ़रहत एहसास

अपनी दुआओं के ज़ख़्मी पैरों से चलता जाता हूँ और ये काँटे-दार रास्ता उस वीरान मस्ज़िद तक जाता है जिस के तमाम गुम्बद-ओ-मेहराब मेरे गुनाहों की धुंद में डूबे हुए हैं

कूज़ा-ग़र / फ़रहत एहसास

ऐ कूज़ा-ग़र! मिरी मिट्टी ले मेरा पानी ले मुझे गूँध ज़रा मुझे चाक चढ़ा मुझे रंग-बिरंगे बर्तन दे

आगाज़ की तारीख़ / फ़रहत एहसास

इक मुसाफ़िर हूँ बड़ी दूर से चलता हुआ आया हूँ यहाँ राह में मझसे जुदा हो गई सूरत मेरी अपने चेहरे का बस इक धुँधला तसव्वुर है मेरी आँखों में रास्ते में मेरे कदमों के निशाँ भी होंगे हो जो मुमकिन तो उन्हीं से मेरे आगाज़ की तारीख़ सुनो.

मैं शहर में किस शख़्स को जीने की दुआ दूँ / फ़रहत एहसास

मैं शहर में किस शख़्स को जीने की दुआ दूँ जीना भी तो सबके लिए अच्छा नहीं होता किसकी है ये तस्वीर जो बनती नहीं मुझसे मैं किसका तकाजा हूँ जो पूरा नहीं होता !

मेरे सुबूत बहे जा रहे हैं पानी में / फ़रहत एहसास

मेरे सुबूत बहे जा रहे हैं पानी में किसे गवाह बनाऊँ सराए-फानी(1) में 1.नाशवान सराय जो आँसुओं में नहाते रहे वो पाक रहे नमाज़ वर्ना किसे मिल सकी जवानी में भड़क उठे हैं फिर आँखों में आँसुओं के चिराग़ फिर आज आग लगा दी गई है पानी में हमीं थे ऐसे कहाँ के अपने घर… Continue reading मेरे सुबूत बहे जा रहे हैं पानी में / फ़रहत एहसास

फिर वही चाँद वही रात कहाँ से लाऊँ / फ़रहत एहसास

फिर वही चाँद वही रात कहाँ से लाऊँ उससे दोबारा मुलाक़ात कहाँ से लाऊँ ! फाका करने से फकीरी तो नहीं मिल जाती तंगदस्ती में करामात कहाँ से लाऊँ ! हर घड़ी जागता रहता है दुखों का सूरज नींद आती है मगर रात कहाँ से लाऊँ !

उस तरफ तो तेरी यकताई है / फ़रहत एहसास

उस तरफ तो तेरी यकताई है इस तरफ़ में मेरी तनहाई है दो अलग लफ़्ज नहीं हिज्र ओ विसाल एक में एक की गोयाई है है निशाँ जंग से भाग आने का घर मुझे बाइस-ए-रूसवाई है हब्स हैं मश्रिक ओ मग़रिब दोनेां अब न पछवा है न पुरवाई है घास की तरह पड़े हैं हम… Continue reading उस तरफ तो तेरी यकताई है / फ़रहत एहसास