या रब मेरे नसीब में अक्ल-ए-हलाल हो / दिलावर ‘फ़िगार’

या रब मेरे नसीब में अक्ल-ए-हलाल हो
खाने को क़ोरमा हो खिलाने को दाल हो

ले कर बरात कौन सुपर हाईवे पे जाए
ऐसी भी क्या ख़ुशी के सड़क पर विसाल हो

जल्दी में मुँह से लफ़्ज़ जमालो निकल गया
कहना ये चाहता था के तुम मह-जमाल हो

औरत को चाहिए के अदालत का रूख करे
जब आदमी को सिर्फ़ ख़ुदा का ख़याल हो

इक बार हम भी राह-नुमा बन के देख लें
फिर उस के बाद क़ौम का जो कुछ भी हाल हो

हम तो किसी से भीख नहीं माँगते ‘फ़िगार’
लेकिन अगर फ़क़ीर की सूरत सवाल हो

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