कन-कन तुम्हें जी कर / धर्मवीर भारती

अतल गहराई तक तुम्ही में डूब कर मिला हुआ अकेलापन, अँजुरी भर-भर कर तुम्हें पाने के असहनीय सुख को सह जाने की थकान, और शाम गहराती हुई छाती हुई तन मन पर कन-कन तुम्हें जी कर पी कर बूँद-बूँद तुम्हें-गाढ़ी एक तृप्ति की उदासी….. और तीसरे पहर की तिरछी धूप का सिंकाव और गहरी तन्मयता… Continue reading कन-कन तुम्हें जी कर / धर्मवीर भारती

क्योंकि सपना है अभी भी / धर्मवीर भारती

…क्योंकि सपना है अभी भी इसलिए तलवार टूटी अश्व घायल कोहरे डूबी दिशाएं कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध धूमिल किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी …क्योंकि सपना है अभी भी! तोड़ कर अपने चतुर्दिक का छलावा जब कि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा कुछ नहीं था पास बस… Continue reading क्योंकि सपना है अभी भी / धर्मवीर भारती

फागुन की शाम / धर्मवीर भारती

घाट के रस्ते उस बँसवट से इक पीली-सी चिड़िया उसका कुछ अच्छा-सा नाम है! मुझे पुकारे! ताना मारे, भर आएँ, आँखड़ियाँ! उन्मन, ये फागुन की शाम है! घाट की सीढ़ी तोड़-तोड़ कर बन-तुलसा उग आयीं झुरमुट से छन जल पर पड़ती सूरज की परछाईं तोतापंखी किरनों में हिलती बाँसों की टहनी यहीं बैठ कहती थी… Continue reading फागुन की शाम / धर्मवीर भारती

अगर डोला कभी इस राह से गुजरे / धर्मवीर भारती

अगर डोला कभी इस राह से गुजरे कुवेला, यहाँ अम्बवा तरे रुक एक पल विश्राम लेना, मिलो जब गाँव भर से बात कहना, बात सुनना भूल कर मेरा न हरगिज नाम लेना अगर कोई सखी कुछ जिक्र मेरा छेड़ बैठे, हँसी में टाल देना बात, आँसू थाम लेना शाम बीते, दूर जब भटकी हुई गायें… Continue reading अगर डोला कभी इस राह से गुजरे / धर्मवीर भारती

उदास तुम / धर्मवीर भारती

तुम कितनी सुन्दर लगती हो जब तुम हो जाती हो उदास ! ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खँडहर के आसपास मदभरी चांदनी जगती हो ! मुँह पर ढँक लेती हो आँचल ज्यों डूब रहे रवि पर बादल, या दिन-भर उड़कर थकी किरन, सो जाती हो पाँखें समेट, आँचल में अलस उदासी बन ! दो… Continue reading उदास तुम / धर्मवीर भारती

प्रार्थना की कड़ी / धर्मवीर भारती

प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी बाँध देती है, तुम्हारा मन, हमारा मन, फिर किसी अनजान आशीर्वाद में-डूबन मिलती मुझे राहत बड़ी! प्रात सद्य:स्नात कन्धों पर बिखेरे केश आँसुओं में ज्यों धुला वैराग्य का सन्देश चूमती रह-रह बदन को अर्चना की धूप यह सरल निष्काम पूजा-सा तुम्हारा रूप जी सकूँगा सौ जनम अँधियारियों में, यदि मुझे… Continue reading प्रार्थना की कड़ी / धर्मवीर भारती

तुम्हारे चरण / धर्मवीर भारती

ये शरद के चाँद-से उजले धुले-से पाँव, मेरी गोद में ! ये लहर पर नाचते ताज़े कमल की छाँव, मेरी गोद में ! दो बड़े मासूम बादल, देवताओं से लगाते दाँव, मेरी गोद में ! रसमसाती धूप का ढलता पहर, ये हवाएँ शाम की, झुक-झूमकर बरसा गईं रोशनी के फूल हरसिंगार-से, प्यार घायल साँप-सा लेता… Continue reading तुम्हारे चरण / धर्मवीर भारती

ठण्डा लोहा (कविता) / धर्मवीर भारती

ठंडा लोहा! ठंडा लोहा! ठंडा लोहा! मेरी दुखती हुई रगों पर ठंडा लोहा! मेरी स्वप्न भरी पलकों पर मेरे गीत भरे होठों पर मेरी दर्द भरी आत्मा पर स्वप्न नहीं अब गीत नहीं अब दर्द नहीं अब एक पर्त ठंडे लोहे की मैं जम कर लोहा बन जाऊँ – हार मान लूँ – यही शर्त… Continue reading ठण्डा लोहा (कविता) / धर्मवीर भारती

अक्र चहार का मक़बरा / एज़रा पाउण्ड / धर्मवीर भारती

मैं तुम्हारी आत्मा हूँ, निकुपतिस्, मैंने निगरानी की है पिछले पचास लाख वर्षों से, और तुम्हारी मुर्दा आँखें हिलीं नहीं, न मेरे रति-संकेतों को समझ सकीं और तुम्हारे कृश अंग, जिसमें मैं धधकती हुई चलती थी, अब मेरे या अन्य किसी अग्निवर्णी वस्तु के स्पर्श से धधक नहीं उठते ! देखो तुम्हारे सिरहाने तकिया लगाने… Continue reading अक्र चहार का मक़बरा / एज़रा पाउण्ड / धर्मवीर भारती