अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं एक बिगड़ी हुई तस्वीर-ए-जवानी हूँ मैं आग बन कर जो कभी दिल में निहाँ रहता था आज दुनिया में उसी ग़म की निशानी हूँ मैं हाए क्या क़हर है मरहूम जवानी की याद दिल से कहती है के ख़ंजर की रवानी हूँ मैं आलम-अफ़रोज़ तपिश तेरे लिए… Continue reading अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं / अख़्तर अंसारी
Category: Akhtar Ansari
अब वो सीना है मज़ार-ए-आरज़ू / अख़्तर अंसारी
अब वो सीना है मज़ार-ए-आरज़ू था जो इक दिन शोला-ज़ार-ए-आरज़ू. अब तक आँखों से टपकता है लहू बुझ गया था दिल में ख़ार-ए-आरज़ू. रंग ओ बू में डूबे रहते थे हवास हाए क्या शय थी बहार-ए-आरज़ू.
आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया / अख़्तर अंसारी
आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया सहते सहते हम को आख़िर रंज सहना आ गया दिल का ख़ूँ आँखों में खिंच आया चलो अच्छा हुआ मेरी आँखों को मेरा अहवाल कहना आ गया सहल हो जाएगी मुश्किल ज़ब्त सोज़ ओ साज़ की ख़ून-ए-दिल को आँख से जिस रोज़ बहना आ गया… Continue reading आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया / अख़्तर अंसारी
आफ़तों में घिर गया हूँ ज़ीस्त से बे-ज़ार हूँ / अख़्तर अंसारी
आफ़तों में घिर गया हूँ ज़ीस्त से बे-ज़ार हूँ मैं किसी रूमान-ए-ग़म का मरकज़ी किरदार हूँ मुद्दतों खेली हैं मुझ से ग़म की बे-दर्द उँगलियाँ मैं रुबाब-ए-ज़िन्दगी का इक शिकस्ता तार हूँ दूसरों का दर्द ‘अख़्तर’ मेरे दिल का दर्द है मुबतला-ए-ग़म है दुनिया और मैं ग़म-ख़्वार हूँ
आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है / अख़्तर अंसारी
आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है दुनिया समझ रही है के आँखों में ख़्वाब है रोए बग़ैर चारा न रोने की ताब है क्या चीज़ उफ़ ये कैफ़ियत-ए-इज़्तिराब है ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ ऐ दर्द-ए-ला-इलाज ये उम्र-ए-शबाब है
वो इत्तेफ़ाक़ से रस्ते में मिल गया था मुझे / अख़्तर अंसारी
वो इत्तफ़ाक़ से रस्ते में मिल गया था मुझे मैं देखता था उसे और वो देखता था मुझे अगरचे उसकी नज़र में थी न [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”दोस्ती,प्यार की भावना”]आशनाई[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] मैं जानता हूँ कि बरसों से जानता था मुझे तलाश कर न सका फिर मुझे वहाँ जाकर ग़लत समझ के जहाँ उसने खो दिया था मुझे बिखर… Continue reading वो इत्तेफ़ाक़ से रस्ते में मिल गया था मुझे / अख़्तर अंसारी
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं / अख़्तर अंसारी
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं मुँह से कहते हुए ये बात मगर डरते हैं एक तस्वीर-ए-मुहब्बत है जवानी गोया जिस में रंगो की [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”बदले”]एवज़[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] ख़ून-ए-जिगर भरते हैं [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”गुजरे हुए खुशी भरे दिन”]इशरत-ए-रफ़्ता[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] ने जा कर न किया याद हमें इशरत-ए-रफ़्ता को हम याद किया करते हैं आसमां से कभी… Continue reading साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं / अख़्तर अंसारी