आफ़तों में घिर गया हूँ ज़ीस्त से बे-ज़ार हूँ / अख़्तर अंसारी

आफ़तों में घिर गया हूँ ज़ीस्त से बे-ज़ार हूँ
मैं किसी रूमान-ए-ग़म का मरकज़ी किरदार हूँ

मुद्दतों खेली हैं मुझ से ग़म की बे-दर्द उँगलियाँ
मैं रुबाब-ए-ज़िन्दगी का इक शिकस्ता तार हूँ

दूसरों का दर्द ‘अख़्तर’ मेरे दिल का दर्द है
मुबतला-ए-ग़म है दुनिया और मैं ग़म-ख़्वार हूँ

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