मधु पीते-पीते थके नयन / गोपालदास “नीरज”

मधु पीते-पीते थके नयन, फ़िर भी प्यासे अरमान ! जीवन में मधु, मधु में गायन, गायन में स्वर, स्वर में कंपन कंपन में साँस, साँस में रस, रस में है विष, विष मध्य जलन जलन में आग, आग में ताप, ताप में प्यार, प्यार में पीर पीर में प्राण, प्राण में प्यास, प्यास में त्रृप्ति,… Continue reading मधु पीते-पीते थके नयन / गोपालदास “नीरज”

यह संभव नहीं / गोपालदास “नीरज”

पंथ की कठिनाइयों से मान लूँ मैं हार-यह संभव नहीं है। मैं चला जब, रोकने दीवार सी दुनिया खड़ी थी, मैं हँसा तब भी, बनी जब आँख सावन की झड़ी थी, उस समय भी मुस्कुराकर गीत मैं गाता रहा था, जबकि मेरे सामने ही लाश खुद मेरी पड़ी थी। आज है यदि देह लथपथ, रक्तमय… Continue reading यह संभव नहीं / गोपालदास “नीरज”

जीवन आधार नहीं मिलता है / गोपालदास “नीरज”

मुझको जीवन आधार नहीं मिलता आशाओं का संसार नहीं मिलता। मधु से पीड़ित-मधुशाला से निर्वासित, जग से, अपनों से निन्दित और उपेक्षित- जीने के योग्य नहीं मेरा जीवन पर मरने का भी अधिकार नहीं मिलता। मुझको जीवन आधार नहीं मिलता.. भव-सागर में लहरों के आलोड़न से, मैं टकराता फ़िरता तट के कण-२ से, पर क्षण… Continue reading जीवन आधार नहीं मिलता है / गोपालदास “नीरज”

खग उड़ते रहना / गोपालदास “नीरज”

भूल गया है तू अपना पथ, और नहीं पंखों में भी गति, किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे, मौत से भी है बदतर। खग! उडते रहना जीवन भर! मत डर प्रलय झकोरों से तू, बढ आशा हलकोरों से तू, क्षण में यह अरि-दल मिट जायेगा तेरे पंखों से पिस कर। खग! उडते रहना जीवन भर!… Continue reading खग उड़ते रहना / गोपालदास “नीरज”

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं / गोपालदास “नीरज”

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं.. तुम मत मेरी मंजिल आसान करो.. हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते.. मरुस्थल, पहाड चलने की चाह बढाते.. सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं.. मेरे पग तब चलने मे भी शर्माते.. मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे.. तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो.. मैं तूफ़ानों… Continue reading मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं / गोपालदास “नीरज”

पिया दूर है न पास है / गोपालदास “नीरज”

ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। बढ़ रहा शरीर, आयु घट रही, चित्र बन रहा लकीर मिट रही, आ रहा समीप लक्ष्य के पथिक, राह किन्तु दूर दूर हट रही, इसलिए सुहागरात के लिए आँखों में न अश्रु है, न हास है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न… Continue reading पिया दूर है न पास है / गोपालदास “नीरज”

लहरों में हलचल / गोपालदास “नीरज”

लहरों में हलचल होती है.. कहीं न ऐसी आँधी आवे जिससे दिवस रात हो जावे यही सोचकर कोकी बैठी तट पर निज धीरज खोती है। लहरों में हलचल होती है.. लो, वह आई आँधी काली तम-पथ पर भटकाने वाली अभी गा रही थी जो कालिका पड़ी भूमि पर वो सोती है। लहरों में हलचल होती… Continue reading लहरों में हलचल / गोपालदास “नीरज”

क्यों उसको जीवन भार ना हो / गोपालदास “नीरज”

क्यों उसको जीवन भार न हो! जो जीवन ताप मिटाती है युग-२ की प्यास बुझाती है इसके अधरों तक जाकर वह मधु मदिरा ही विष बन जाए। क्यों उसको जीवन भार न हो.. जो हिम सी शीतल शांत सजल है जीवन पंथी की मंजिल वह अमर मौत भी एक बार जिसकी मिट्टी से घबराए। क्यों… Continue reading क्यों उसको जीवन भार ना हो / गोपालदास “नीरज”

मरण-त्योहार / गोपालदास “नीरज”

पथिक! ठहरने का न ठौर जग, खुले पड़े सब द्वार और डोलियों का घर-घर पर लगा हुआ बाज़ार जन्म है यहाँ मरण-त्योहार.. देख! धरा की नग्न लाश पर नीलाकाश खड़ा है सागर की शीतल छाती में ज्वालामुखी जड़ा है सूर्य उठाए हुए चाँद की अर्थी निज कंधों पर और कली के सम्मुख उपवन का कंकाल… Continue reading मरण-त्योहार / गोपालदास “नीरज”

दिया जलता रहा / गोपालदास “नीरज”

जी उठे शायद शलभ इस आस में रात भर रो रो, दिया जलता रहा। थक गया जब प्रार्थना का पुण्य, बल, सो गयी जब साधना होकर विफल, जब धरा ने भी नहीं धीरज दिया, व्यंग जब आकाश ने हँसकर किया, आग तब पानी बनाने के लिए- रात भर रो रो, दिया जलता रहा। जी उठे… Continue reading दिया जलता रहा / गोपालदास “नीरज”