कितने दिन चलेगा / गोपालदास “नीरज”

रूप की इस काँपती लौ के तले यह हमारा प्यार कितने दिन चलेगा ? नील-सर में नींद की नीली लहर, खोजती है भोर का तट रात भर, किन्तु आता प्रात जब गाती ऊषा, बूँद बन कर हर लहर जाती बिखर, प्राप्ति ही जब मृत्यु है अस्तित्व की, यह हृदय-व्यापार कितने दिन चलेगा ? रूप की… Continue reading कितने दिन चलेगा / गोपालदास “नीरज”

तुमने कितनी निर्दयता की / गोपालदास “नीरज”

तुमने कितनी निर्दयता की ! सम्मुख फैला कर मधु-सागर, मानस में भर कर प्यास अमर, मेरी इस कोमल गर्दन पर रख पत्थर का गुरु भार दिया। तुमने कितनी निर्दयता की ! अरमान सभी उर के कुचले, निर्मम कर से छाले मसले, फिर भी आँसू के घूँघट से हँसने का ही अधिकार दिया। तुमने कितनी निर्दयता… Continue reading तुमने कितनी निर्दयता की / गोपालदास “नीरज”

कितनी अतृप्ति है / गोपालदास “नीरज”

कितनी अतृप्ति है… कितनी अतृप्ति है जीवन में ? मधु के अगणित प्याले पीकर, कहता जग तृप्त हुआ जीवन, मुखरित हो पड़ता है सहसा, मादकता से कण-कण प्रतिक्षण, पर फिर विष पीने की इच्छा क्यों जागृत होती है मन में ? कवि का विह्वल अंतर कहता, पागल, अतृप्ति है जीवन में।

नींद भी मेरे नयन की / गोपालदास “नीरज”

प्राण ! पहले तो हृदय तुमने चुराया छीन ली अब नींद भी मेरे नयन की बीत जाती रात हो जाता सबेरा, पर नयन-पंक्षी नहीं लेते बसेरा, बन्द पंखों में किये आकाश-धरती खोजते फिरते अँधेरे का उजेरा, पंख थकते, प्राण थकते, रात थकती खोजने की चाह पर थकती न मन की। छीन ली अब नींद भी… Continue reading नींद भी मेरे नयन की / गोपालदास “नीरज”

अब तुम्हारा प्यार भी / गोपालदास “नीरज”

अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि ! चाहता था जब हृदय बनना तुम्हारा ही पुजारी, छीनकर सर्वस्व मेरा तब कहा तुमने भिखारी, आँसुओं से रात दिन मैंने चरण धोये तुम्हारे, पर न भीगी एक क्षण भी चिर निठुर चितवन तुम्हारी, जब तरस कर आज पूजा-भावना ही मर चुकी है, तुम चलीं मुझको दिखाने… Continue reading अब तुम्हारा प्यार भी / गोपालदास “नीरज”

जीवन जहाँ / गोपालदास “नीरज”

जीवन जहाँ खत्म हो जाता ! उठते-गिरते, जीवन-पथ पर चलते-चलते, पथिक पहुँच कर, इस जीवन के चौराहे पर, क्षणभर रुक कर, सूनी दृष्टि डाल सम्मुख जब पीछे अपने नयन घुमाता ! जीवन वहाँ ख़त्म हो जाता !

मानव कवि बन जाता है / गोपालदास “नीरज”

तब मानव कवि बन जाता है! जब उसको संसार रुलाता, वह अपनों के समीप जाता, पर जब वे भी ठुकरा देते वह निज मन के सम्मुख आता, पर उसकी दुर्बलता पर जब मन भी उसका मुस्काता है! तब मानव कवि बन जाता है!

सत्ताईस हाइकु / गोपालदास “नीरज”

1. ओस की बूंद फूल पर सोई जो धूल में मिली 2. वो हैं अपने जैसे देखे हैं मैंने कुछ सपने 3. किसको मिला वफा का दुनिया में वफा हीं सिला 4. तरना है जो भव सागर यार कर भ्रष्टाचार 5. क्यों शरमाए तेरा ये बांकपन सबको भाए 6. राजनीती है इन दिनों उद्योग इसको… Continue reading सत्ताईस हाइकु / गोपालदास “नीरज”

मुक्तक / गोपालदास “नीरज”

बादलों से सलाम लेता हूँ वक्त क़े हाथ थाम लेता हूँ सारा मैख़ाना झूम उठता है जब मैं हाथों में जाम लेता हूँ ख़ुशी जिस ने खोजी वो धन ले के लौटा हँसी जिस ने खोजी चमन ले के लौटा मगर प्यार को खोजने जो गया वो न तन ले के लौटा न मन ले… Continue reading मुक्तक / गोपालदास “नीरज”

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए / गोपालदास “नीरज”

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए। जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए। जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए। आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए। प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए… Continue reading अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए / गोपालदास “नीरज”