कारवाँ गुज़र गया / गोपालदास “नीरज”

स्वप्न झरे फूल से मीत चुभे शूल से लुट गए सिंगार सभी बाग़ के बबूल से और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे! नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गयी पाँव जब तलक उठें कि ज़िन्दगी फिसल गयी पात-पात झर गए कि शाख-शाख जल गयी चाह तो… Continue reading कारवाँ गुज़र गया / गोपालदास “नीरज”

ओ प्यासे अधरोंवाली / गोपालदास “नीरज”

ओ प्यासे अधरोंवाली ! इतनी प्यास जगा बिन जल बरसाए यह घनश्याम न जा पाए ! गरजी-बरसीं सौ बार घटाएँ धरती पर गूँजी मल्हार की तान गली-चौराहों में लेकिन जब भी तू मिली मुझे आते-जाते देखी रीती गगरी ही तेरी बाँहों में, सब भरे-पुरे तब प्यासी तू, हँसमुख जब विश्व, उदासी तू, ओ गीले नयनोंवाली… Continue reading ओ प्यासे अधरोंवाली / गोपालदास “नीरज”

यदि वाणी भी मिल जाए दर्पण को / गोपालदास “नीरज”

सुन्दरता ख़ुद से ही शरमा जाए यदि वाणी भी मिल जाए दर्पण को ! खुबसूरत है हर फूल मगर उसका कब मोल चुका पाया है सब मधुबन ? जब प्रेम समर्पण देता है अपना सौन्दर्य तभी करता है निज दर्शन, अर्पण है सृजन और रुपान्तर भी, पर अन्तर-योग बिना है नश्वर भी, सच कहता हूँ… Continue reading यदि वाणी भी मिल जाए दर्पण को / गोपालदास “नीरज”

अधिकार सबका है बराबर / गोपालदास “नीरज”

फूल पर हँसकर अटक तो, शूल को रोकर झटक मत, ओ पथिक ! तुझ पर यहाँ अधिकार सबका है बराबर ! बाग़ है ये, हर तरह की वायु का इसमें गमन है, एक मलयज की वधू तो एक आँधी की बहन है, यह नहीं मुमकिन कि मधुऋतु देख तू पतझर न देखे, कीमती कितनी कि… Continue reading अधिकार सबका है बराबर / गोपालदास “नीरज”

हर दर्पन तेरा दर्पन है / गोपालदास “नीरज”

हर दर्पन तेरा दर्पन है, हर चितवन तेरी चितवन है, मैं किसी नयन का नीर बनूँ, तुझको ही अर्घ्य चढ़ाता हूँ ! नभ की बिंदिया चन्दावाली, भू की अंगिया फूलोंवाली, सावन की ऋतु झूलोंवाली, फागुन की ऋतु भूलोंवाली, कजरारी पलकें शरमीली, निंदियारी अलकें उरझीली, गीतोंवाली गोरी ऊषा, सुधियोंवाली संध्या काली, हर चूनर तेरी चूनर है,… Continue reading हर दर्पन तेरा दर्पन है / गोपालदास “नीरज”

दीप और मनुष्य / गोपालदास “नीरज”

एक दिन मैंने कहा यूँ दीप से ‘‘तू धरा पर सूर्य का अवतार है, किसलिए फिर स्नेह बिन मेरे बता तू न कुछ, बस धूल-कण निस्सार है ?’’ लौ रही चुप, दीप ही बोला मगर ‘‘बात करना तक तुझे आता नहीं, सत्य है सिर पर चढ़ा जब दर्प हो आँख का परदा उधर पाता नहीं।… Continue reading दीप और मनुष्य / गोपालदास “नीरज”

दर्द दिया है (कविता) / गोपालदास “नीरज”

दर्द दिया है, अश्रु स्नेह है, बाती बैरिन श्वास है, जल-जलकर बुझ जाऊँ, मेरा बस इतना इतिहास है ! मैं ज्वाला का ज्योति-काव्य चिनगारी जिसकी भाषा, किसी निठुर की एक फूँक का हूँ बस खेल-तमाशा पग-तल लेटी निशा, भाल पर बैठी ऊषा गोरी, एक जलन से बाँध रखी है साँझ-सुबह की डोरी सोये चाँद-सितारे, भू-नभ,… Continue reading दर्द दिया है (कविता) / गोपालदास “नीरज”