मधु पीते-पीते थके नयन / गोपालदास “नीरज”

मधु पीते-पीते थके नयन, फ़िर भी प्यासे अरमान !

जीवन में मधु, मधु में गायन, गायन में स्वर, स्वर में कंपन
कंपन में साँस, साँस में रस, रस में है विष, विष मध्य जलन
जलन में आग, आग में ताप, ताप में प्यार, प्यार में पीर
पीर में प्राण, प्राण में प्यास, प्यास में त्रृप्ति, तृप्ति का नीर
और यह तृप्ति, तृप्ति ही क्षणिक, विश्व की मीठी मधुर थकान!
फ़िर भी प्यासे अरमान!!

जीवन पाया, पर जीवन में क्या दो क्षण सुख के बीत सके?
मन छलने वाले मिले बहुत, पर क्या मिल मन के मीत सके?
यह रेगिस्तानी प्यास मिली, मधु पाकर और मचलती है,
यह ठन्डी मीठी आग मिली, जो जीवन पीकर जलती है
सब कुछ मिल गया, मगर न मिले प्याले में डूबे प्राण!
फ़िर भी प्यासे अरमान!!

मणि-खचित-दया के प्याले में, मैंने न कभी पीना सीखा
जग के चरणों में नत-मस्तक होकर न कभी जीना सीखा
कितनी कोमल निर्ममता से पर तुम सपनों के चित्रकार!
क्षण भर में छल कर गये प्राण, मानव की करके मधुर हार
आँसू बन आए, चले गए, इतने पर भी एहसान!
फ़िर भी प्यासे अरमान!!

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