पिता के लिए शोकगीत-2 / एकांत श्रीवास्तव

आदमी अकेला नहीं मरता मरता है घर का एक-एक जन थोड़ी-थोड़ी सी मौत मर जाती है झोलों में भरकर बाज़ार से आनेवाली खुशी आटे के बिना कनस्तर और रोटी के बिना चूल्हा मर जाता है मर जाता है तेल के बिना हर साँझ जलने वाला दिया दिये के बिना मर जाती है देहरी घर की… Continue reading पिता के लिए शोकगीत-2 / एकांत श्रीवास्तव

पिता के लिए शोकगीत-1 / एकांत श्रीवास्तव

गीला सफ़ेद कपड़ा लपेट कर जिसे हम सौंप आए हैं अग्नि को इतनी जल्दी नहीं जाएगा वह गड़ी रहेगी महीनों तक उसकी याद पाँव में बबूल के काँटे की तरह और धीरे-धीरे बहता रहेगा दुख एक रौबदार आवाज़ अब कहीं सुनाई नहीं देगी एक हँसता हुआ चेहरा अब कभी दिखाई नहीं देगा घर की लिपी… Continue reading पिता के लिए शोकगीत-1 / एकांत श्रीवास्तव

दुख / एकांत श्रीवास्तव

दुख वह है जो आँसुओं के सूख जाने के बाद भी रहता है ढुलकता नहीं मगर मछली की आँख-सा रहता है डबडब जो नदी की रेत में अचानक चमकता है चमकीले पत्थर की तरह जब हम उसे भूल चुके होते हैं दुख वह है जिसमें घुलकर उजली हो जाती है हमारी मुस्कान जिसमें भीगकर मज़बूत… Continue reading दुख / एकांत श्रीवास्तव

बांग्ला देश / एकांत श्रीवास्तव

हमारे घर समुद्र में बह गए हमारी नावें समुद्र में डूब गईं हर जगह हर जगह हर जगह उफन रहा है समुद्र हमारे आँगन में समुद्र की झाग हमारे सपनों में समुद्र की रेत अभागे वृक्ष हैं हम बह गई जिनके जड़ों की मिट्टी कभी महामारी कभी तूफ़ान में कभी युद्ध कभी दंगे में कभी… Continue reading बांग्ला देश / एकांत श्रीवास्तव

बीज से फूल तक / एकांत श्रीवास्तव

आ गया भादों का पानी काँस के फूलों को दुलारता और चैत की सुलगती दुपहरी में पड़ी है मन की चट्टान एक दूब की हरियाली तक मयस्सर नहीं तपो इतना तपो ओ सूर्य कि फट जाए दरक जाए यह चट्टान कि रास्ता बन जाए अंकुर फूटने का जीवन बीज से फूल तक यात्रा बन जाए… Continue reading बीज से फूल तक / एकांत श्रीवास्तव

अनाम चिड़िया के नाम / एकांत श्रीवास्तव

गंगा इमली की पत्तियों में छुपकर एक चिड़िया मुँह अँधेरे बोलती है बहुत मीठी आवाज़ में न जाने क्या न जाने किससे और बरसता है पानी आधी नींद में खाट-बिस्तर समेटकर घरों के भीतर भागते हैं लोग कुछ झुँझलाए, कुछ प्रसन्न घटाटोप अंधकार में चमकती है बिजली मूसलधार बरसता है पानी सजल हो जाती हैं… Continue reading अनाम चिड़िया के नाम / एकांत श्रीवास्तव

जन्मदिन / एकांत श्रीवास्तव

आकाश के थाल में तारों के झिलमिलाते दीप रखकर उतारो मेरी आरती दूध मोंगरा का सफ़ेद फूल धरो मेरे सिर पर गुलाल से रंगे सोनामासुरी से लगाओ मेरे माथ पर टीका सरई के दोने में भरे कामधेनु के दूध से जुटःआरो मेरा मुँह कि नहीं आई कोई सनसनाती गोली मेरे सीने में कि नहीं भोंका… Continue reading जन्मदिन / एकांत श्रीवास्तव

हम तिलचट्टों की तरह (समर्पण पृष्ठ) / एकांत श्रीवास्तव

हम तिलचट्टों की तरह पैदा नहीं हुए नीम अंधेरों में दीमकों की तरह नहीं सीलन भरी जगहों में उस आदिम स्त्री की कोख में मनु का पुआर बनकर गिरे हम और धरती पर आए हमारी कहानी पत्थरों से आग पैदा करने की कहानी है ।

नागरिक व्यथा / एकांत श्रीवास्तव

किस ऋतु का फूल सूँघूँ किस हवा में साँस लूँ किस डाली का सेब खाऊँ किस सोते का जल पियूँ पर्यावरण वैज्ञानिकों! कि बच जाऊँ किस नगर में रहने जाऊँ कि अकाल न मारा जाऊँ किस कोख से जनम लूँ कि हिन्‍दू न मुस्लिम कहलाऊँ समाज शास्ञियों! कि बच जाऊँ किस बात पर हँसूँ किस… Continue reading नागरिक व्यथा / एकांत श्रीवास्तव

एक बीज की आवाज़ पर / एकांत श्रीवास्तव

बीज में पेड़ पेड़ में जंगल जंगल में सारी वनस्‍पति पृथ्‍वी की और सारी वनस्‍पति एक बीज में सैकड़ों चिडियों के संगीत से भरा भविष्‍य और हमारे हरे भरे दिन लिए चीख़ता है बीज पृथ्‍वी के गर्भ के नीम अँधेरे में- इस बार पानी में सबसे पहले मैं भीगूँ बारिश की पहली फुहार की उँगली… Continue reading एक बीज की आवाज़ पर / एकांत श्रीवास्तव