ताजमहल / एकांत श्रीवास्तव

तुम प्रेम करो मगर ताजमहल के बारे में मत सोचो यों भी यह साधारण प्रेमियों की हैसियत से बाहर की वस्तु है अगर तुम उस स्त्री को- जिससे तुम प्रेम करते हो- कुछ देना चाहते हो तो बेहतर है कि जीवन रहते दो मसलन कातिक की क्यारी से कोई बड़ा पीला गेंदे का फूल यह… Continue reading ताजमहल / एकांत श्रीवास्तव

पत्तों के हिलने की आवाज़ / एकांत श्रीवास्तव

तुम एक फूल को सूँघते हो तो यह उस फूल की महक है शब्दों की महक से गमकता है काग़ज़ का हृदय कस्तूरी की महक से जंगल और मनुष्य की महक से धरती धरती की महक मनुष्य की महक से बड़ी है मगर धरती स्वयं मनुष्य की महक और आवाज़ और स्वप्न से बनी है… Continue reading पत्तों के हिलने की आवाज़ / एकांत श्रीवास्तव

दुःख / एकांत श्रीवास्तव

दु:ख जब तक हृदय में था था बर्फ़ की तरह पिघला तो उमड़ा आँसू बनकर गिरा तो जल की तरह मिट्टी में रिस गया भीतर बीज तक बीज से फूल तक यह जो फूल खिला है टहनी पर इसे देखकर क्या तुम कह सकते हो कि इसके जन्म का कारण एक दु:ख था?

बिजली / एकांत श्रीवास्तव

बिजली गिरती है और एक हरा पेड़ काला पड़ जाता है फिर उस पर न पक्षी उतरते हैं न वसंत एक दिन एक बढ़ई उसे काटता है और बैलगाड़ी के पहिये में बदल देता है दुख जब बिजली की तरह गिरता है तब राख कर देता है या देता है नया एक जन्म।

नमक बेचने वाले / एकांत श्रीवास्तव

(विशाखापट्टनम की सड़कों पर नमक बेचने वालों को देखकर) ऋतु की आँच में समुद्र का पानी सुखाकर नमक के खेतों से बटोरकर सफ़ेद ढेले वे आते हैं दूर गाँवों से शहर की सड़कों पर नमक बेचने वाले काठ की दो पहियों वाली हाथगाड़ी को कमर में फँसाकर खींचते हुए ऐसे समय में जब लगातार कम… Continue reading नमक बेचने वाले / एकांत श्रीवास्तव

करेले बेचने आई बच्चियाँ / एकांत श्रीवास्तव

पुराने उजाड़ मकानों में खेतों-मैदानों में ट्रेन की पटरियों के किनारे सड़क किनारे घूरों में उगी हैं जो लताएँ जंगली करेले की वहीं से तोड़कर लाती हैं तीन बच्चियाँ छोटे-छोटे करेले गहरे हरे कुछ काई जैसे रंग के और मोल-भाव के बाद तीन रुपए में बेच जाती हैं उन तीन रुपयों को वे बांट लेती… Continue reading करेले बेचने आई बच्चियाँ / एकांत श्रीवास्तव

पाणिग्रहण / एकांत श्रीवास्तव

जिसे थामा है अग्नि को साक्षी मानकर साक्षी मानकर तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं को एक अधूरी कथा है यह जिसे पूरा करना है इसे छोड़ूंगा तो धरती डोल जाएगी ।

यात्रा / एकांत श्रीवास्तव

नदियां थीं हमारे रास्ते में जिन्हें बार-बार पार करना था एक सूर्य था जो डूबता नहीं था जैसे सोचता हो कि उसके बाद हमारा क्या होगा एक जंगल था नवम्बर की धूप में नहाया हुआ कुछ फूल थे हमें जिनके नाम नहीं मालूम थे एक खेत था धान का पका जो धारदार हंसिया के स्पर्श… Continue reading यात्रा / एकांत श्रीवास्तव

पिता के लिए शोकगीत-4 / एकांत श्रीवास्तव

आधी राह तक आए पिता मेरे साथ और उंगली छोड़ दी घर के दर्पण ने दिनों तक याद किया उस एक चेहरे को जो अब उसमें नहीं झाँकता रसोई की एक खाली जगह पर दिनों तक डोलती रही उदासी जहाँ अब कोई थाली परोसी नहीं जाती आंगन में खाली पड़ी रही दिनों तक आराम-कुर्सी बंद… Continue reading पिता के लिए शोकगीत-4 / एकांत श्रीवास्तव

पिता के लिए शोकगीत-3 / एकांत श्रीवास्तव

इस रास्ते पर पड़े हैं फूल लाई और सिक्के इस रास्ते पर गिरे हैं आँसू एक शव आज ले जाया गया है इस रास्ते से इस सन्नाटे में खो गई है किसी के कंठ की लोरी इस धूल में मिल गया है एक स्त्री के जीवन का सबसे सुंदर रंग पेड़ स्तब्ध हैं कि इस… Continue reading पिता के लिए शोकगीत-3 / एकांत श्रीवास्तव