कार्तिक पूर्णिमा / एकांत श्रीवास्तव

आज सिरा रहे हैं लोग दोने में धरकर अपने-अपने दिये अपने-अपने फूल और मन्‍नतों की पीली रोशनी में चमक रही है नदी टिमटिमाते दीपों की टेढ़ी-मेढ़ी पाँतें साँवली स्‍लेट पर जैसे ढाई आखर हों कबीर के देख रहे हैं काँस के फूल खेतों की मेड़ों पर खड़े दूर से यह उत्‍सव चमक रहा है गाँव… Continue reading कार्तिक पूर्णिमा / एकांत श्रीवास्तव

सूखा / एकांत श्रीवास्तव

इस तरह मेला घूमना हुआ इस बार न बच्‍चे के लिए मिठाई न घरवाली के लिए टिकुली-चूड़ी न नाच न सर्कस इस बार जेबों में सिर्फ़ हाथ रहे उसका खालीपन भरते इस बार मेले में पहुँचने की ललक से पहले पहुँच गई लौटने की थकान एक खाली कटोरे के सन्‍नाटे में डूबती रही मेले की… Continue reading सूखा / एकांत श्रीवास्तव

लौटती बैलगाड़ी का गीत / एकांत श्रीवास्तव

जब नींद में डूब चुकी है धरती और केवल बबूल के फूलों की महक जाग रही है तब दूधिया चाँदनी में धान से लदी वह लौट रही है लौट रहे हैं अन्‍न बचपन बीत जाने के बाद बचपन को याद करते घंटियों की टुनुन-टुनुन गाँव की नींद तक पहुँच रही है और सारा गाँव अगुवानी… Continue reading लौटती बैलगाड़ी का गीत / एकांत श्रीवास्तव

अच्छे दिन / एकांत श्रीवास्तव

अच्‍छे दिन खरगोश हैं लौटेंगे हरी दूब पर उछलते-कूदते और हम गोद में लेकर उन्‍हें प्‍यार करेंगे अच्‍छे दिन पक्षी हैं उतरेंगे हरे पेड़ों की सबसे ऊँची फुनगियों पर और हम बहेलिये के जाल से उन्‍हें सचेत करेंगे अच्‍छे दिन दोस्‍त हैं मिलेंगे यात्रा के किसी मोड़ पर और हम उनसे कभी न बिछुड़ने का… Continue reading अच्छे दिन / एकांत श्रीवास्तव

सूर्य / एकांत श्रीवास्तव

उधर ज़मीन फट रही है और वह उग रहा है चमक रही हैं नदी की ऑंखें हिल रहे हैं पेड़ों के सिर और पहाड़ों के कन्‍धों पर हाथ रखता आहिस्‍ता-आहिस्‍ता वह उग रहा है वह खिलेगा जल भरी आँखों के सरोवर में रोशनी की फूल बनकर वह चमकेगा धरती के माथ पर अखण्‍ड सुहाग की… Continue reading सूर्य / एकांत श्रीवास्तव

ओ मेरे पिता (समर्पण) / एकांत श्रीवास्तव

मायावी सरोवर की तरह अदृश्‍य हो गए पिता रह गए हम पानी की खोज में भटकते पक्षी ओ मेरे आकाश पिता टूट गए हम तुम्‍हारी नीलिमा में टँके झिलमिल तारे ओ मेरे जंगल पिता सूख गए हम तुम्‍हारी हरियाली में बहते कलकल झरने ओ मेरे काल पिता बीत गए तुम रह गए हम तुम्‍हारे कैलेण्‍डर… Continue reading ओ मेरे पिता (समर्पण) / एकांत श्रीवास्तव