ओ मेरे पिता (समर्पण) / एकांत श्रीवास्तव

मायावी सरोवर की तरह
अदृश्‍य हो गए पिता
रह गए हम
पानी की खोज में भटकते पक्षी

ओ मेरे आकाश पिता
टूट गए हम
तुम्‍हारी नीलिमा में टँके
झिलमिल तारे

ओ मेरे जंगल पिता
सूख गए हम
तुम्‍हारी हरियाली में बहते
कलकल झरने

ओ मेरे काल पिता
बीत गए तुम
रह गए हम
तुम्‍हारे कैलेण्‍डर की
उदास तारीखें

हम झेलेंगे दुःख
पोंछेंगे आँसू
और तुम्‍हारे रास्‍ते पर चलकर
बनेंगे सरोवर, आकाश, जंगल और काल
ताकि हरी हो घर की एक-एक डाल।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *