भाई का चेहरा-1 / एकांत श्रीवास्तव

एक धुंध के पार
उभरता है
भाई का चेहरा

हवा में, अग्नि में, जल में,
धरती में, आकाश में
शामिल होता हुआ भाई
देखता होगा आख़िरी बार मुझे पलटकर
अनंत की चौखट के भीतर जाने से पहले

ओ भाई मेरे
मैं यहीं से करता हूँ विदा
यहीं से हिलाता हूँ हाथ
देखते-देखते
झुलस रहा होगा जंगल का एक हरा टुकड़ा
सत्ताईस शीशम के पेड़
झुलस रहे होंगे

एक धुंध के पार
उभरता है
भाई का चेहरा।

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