कवि का जीवन / अग्निशेखर

कविता लिखना
तपे हुए लोहे के घोड़े पर चढ़ना है
या उबलते हुए दरिया में
छलाँग मार कर मिल आना
उन बेचैन हुतात्माओं से
जो करते हैं
हमारी स्मृति में वास
पूछना उनसे शहीद होने के अनुभव
और करना महसूस अनपे रक्त में
उनके नीले होठों पर दम तोड़ चुके
शब्दों को

यह कविता मेरे समय में
किस काग़ज़ पर उतारी जा सकती है
अपने खुलते हुए लहू से
सिवाय बलिवेदी के

ऐसे कवि का जीवन
आकाँक्षा मेरी

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