रोने से जो भड़ास थी दिल की निकल / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

रोने से जो भड़ास थी दिल की निकल गई आँसू बहाए चार तबीअत सँभल गई मैं ने तरस तरस के गुज़ारी है सारी उम्र मेरी न होगी जान जो हसरत निकल गई बे-चैन हूँ मैं जब से नहीं दिल-लगी कहीं वो दर्द क्या गया के मेरे दिल की कल गई कहता है चारा-गर के न… Continue reading रोने से जो भड़ास थी दिल की निकल / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

मुझ को आता है तयम्मुम न वज़ू आता / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

मुझ को आता है तयम्मुम न वज़ू आता है सजदा कर लेता हूँ जब सामने तू आता है यूँ तो शिकवा भी हमें आईना-रू आता है होंट सिल जाते हैं जब सामने तू आता है हाथ धोए हुए हूँ नीस्ती ओ हस्ती से शैख़ क्या पूछता है मुझ से वज़ू आता है मिन्नतें करती है… Continue reading मुझ को आता है तयम्मुम न वज़ू आता / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

जब्र को इख़्तियार कौन करे / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

जब्र को इख़्तियार कौन करे तुम से ज़ालिम को प्यार कौन करे ज़िंदगी है हज़ार ग़म का नाम इस समुंदर को पार कौन करे आप का वादा आप का दीदार हश्र तक इंतिज़ार कौन करे अपना दिल अपनी जान का दुश्मन ग़ैर का ऐतबार कौन करे हम जिलाए गए हैं मरने को इस करम की… Continue reading जब्र को इख़्तियार कौन करे / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई अब क्या है वो उतर गई नद्दी चढ़ी हुई तुम जान दे के लेते हो ये भी नई हुई लेते नहीं सख़ी तो कोई चीज़ दी हुई इस टूटे फूटे दिल को न छेड़ो परे हटो क्या कर रहे हो आग है इस में दबी हुई लो… Continue reading दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

बहार आई है फिर चमन में नसीम / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

बहार आई है फिर चमन में नसीम इठला के चल रही है हर एक गुंचा चटक रहा है गुलों की रंगत बदल रही है वो आ गए लो वो जी उठा मैं अदू की उम्मीद-ए-यास ठहरी अजब तमाशा है दिल-लगी है क़ज़ा खड़ी हाथ मल रही है बताओ दिल दूँ न दूँ कहो तो अजीब… Continue reading बहार आई है फिर चमन में नसीम / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

क्या करूंगी मैं / आकांक्षा पारे

देहरी पर आती पीली धूप के ठीक बीच खड़े थे तुम प्रखर रश्मियों के बीच कोई न समझ सका था तुम्हारा प्रेम पूरे आंगन में, बिखरी पड़ी थी तुम्हारी याचना, पिता का क्रोध भाई की अकड़ माँ के आँसू शाम बुहारने लगी जब दालान मैंने चुपके से समेट लिया गुनगुनी धूप का वो टुकड़ा क़ैद… Continue reading क्या करूंगी मैं / आकांक्षा पारे

ख़ौफ़ / आकांक्षा पारे

मैं नहीं डरती मौत से न डराता है मुझे उसका ख़ौफ़ मैं नहीं डरती उसके आने के अहसास से न डराते हैं मुझे उसके स्वप्न मैं डरती हूं उस सन्नाटे से जो पसरता है घर से ज़्यादा दिलों पर डरती हूँ उन आँसुओं से जो दामन से ज़्यादा भिगोते हैं मन डरती हूँ माँ के… Continue reading ख़ौफ़ / आकांक्षा पारे

अनंत यात्रा / आकांक्षा पारे

अपनी कहानियों में मैंने उतारा तुम्हारे चरित्र को उभार नहीं पाई उसमें तुम्हारा व्यक्तित्व। बांधना चाहा कविताओं में रूप तुम्हारा पर शब्दों के दायरे में न आ सका तुम्हारा मन इस बार रंगों और तूलिका से उकेर दी मैंने तुम्हारी देह असफलता ही मेरी नियति है तभी सूनी है वह तुम्हारी आत्मा के बिन

बित्ते भर की चिंदी / आकांक्षा पारे

पीले पड़ गए उन पन्नों पर सब लिखा है बिलकुल वैसा ही कागज़ की सलवटों के बीच बस मिट गए हैं कुछ शब्द। अस्पष्ट अक्षरों को पढ़ सकती हूं बिना रूके आज भी बित्ते भर की चिंदी में समाई हुई हूँ मैं। अनगढ़ लिखावट से लिखी गई है एक अल्हड़ प्रणय-गाथा उसमें मौज़ूद है सांझे… Continue reading बित्ते भर की चिंदी / आकांक्षा पारे

घर संभालती स्त्री / आकांक्षा पारे

गुस्सा जब उबलने लगता है दिमाग में प्रेशर कुकर चढ़ा देती हूँ गैस पर भाप निकलने लगती है जब एक तेज़ आवाज़ के साथ ख़ुद-ब-ख़ुद शांत हो जाता है दिमाग पलट कर जवाब देने की इच्छा पर पीसने लगती हूँ, एकदम लाल मिर्च पत्थर पर और रगड़ कर बना देती हूँ स्वादिष्ट चटनी जब कभी… Continue reading घर संभालती स्त्री / आकांक्षा पारे