ज़र्रा भी अगर रंग-ए-ख़ुदाई नहीं देता / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

ज़र्रा भी अगर रंग-ए-ख़ुदाई नहीं देता अंधा है तुझे कुछ भी दिखाई नहीं देता दिल की बुरी आदत है जो मिटता है बुतों पर वल्लाह मैं उन को तो बुराई नहीं देता किस तरह जवानी में चलूँ राह पे नासेह ये उम्र ही ऐसी है सुझाई नहीं देता गिरता है उसी वक़्त बशर मुँह के… Continue reading ज़र्रा भी अगर रंग-ए-ख़ुदाई नहीं देता / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

उन्स अपने में कहीं पाया न बे-गाने / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

उन्स अपने में कहीं पाया न बे-गाने में था क्या नशा है सारा आलम एक पैमाने में था आह इतनी काविशें ये शोर-ओ-शर ये इज़्तिराब एक चुटकी ख़ाक की दो पर ये परवाने में था आप ही उस ने अनलहक़ कह दिया इलज़ाम क्या होश किस ने ले लिया था होश दीवाने में था अल्लाह… Continue reading उन्स अपने में कहीं पाया न बे-गाने / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

रोने से जो भड़ास थी दिल की निकल / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

रोने से जो भड़ास थी दिल की निकल गई आँसू बहाए चार तबीअत सँभल गई मैं ने तरस तरस के गुज़ारी है सारी उम्र मेरी न होगी जान जो हसरत निकल गई बे-चैन हूँ मैं जब से नहीं दिल-लगी कहीं वो दर्द क्या गया के मेरे दिल की कल गई कहता है चारा-गर के न… Continue reading रोने से जो भड़ास थी दिल की निकल / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

मुझ को आता है तयम्मुम न वज़ू आता / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

मुझ को आता है तयम्मुम न वज़ू आता है सजदा कर लेता हूँ जब सामने तू आता है यूँ तो शिकवा भी हमें आईना-रू आता है होंट सिल जाते हैं जब सामने तू आता है हाथ धोए हुए हूँ नीस्ती ओ हस्ती से शैख़ क्या पूछता है मुझ से वज़ू आता है मिन्नतें करती है… Continue reading मुझ को आता है तयम्मुम न वज़ू आता / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

जब्र को इख़्तियार कौन करे / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

जब्र को इख़्तियार कौन करे तुम से ज़ालिम को प्यार कौन करे ज़िंदगी है हज़ार ग़म का नाम इस समुंदर को पार कौन करे आप का वादा आप का दीदार हश्र तक इंतिज़ार कौन करे अपना दिल अपनी जान का दुश्मन ग़ैर का ऐतबार कौन करे हम जिलाए गए हैं मरने को इस करम की… Continue reading जब्र को इख़्तियार कौन करे / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई अब क्या है वो उतर गई नद्दी चढ़ी हुई तुम जान दे के लेते हो ये भी नई हुई लेते नहीं सख़ी तो कोई चीज़ दी हुई इस टूटे फूटे दिल को न छेड़ो परे हटो क्या कर रहे हो आग है इस में दबी हुई लो… Continue reading दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

बहार आई है फिर चमन में नसीम / ‘शाएर’ क़ज़लबाश

बहार आई है फिर चमन में नसीम इठला के चल रही है हर एक गुंचा चटक रहा है गुलों की रंगत बदल रही है वो आ गए लो वो जी उठा मैं अदू की उम्मीद-ए-यास ठहरी अजब तमाशा है दिल-लगी है क़ज़ा खड़ी हाथ मल रही है बताओ दिल दूँ न दूँ कहो तो अजीब… Continue reading बहार आई है फिर चमन में नसीम / ‘शाएर’ क़ज़लबाश