ठुकरा दो या प्यार करो / सुभद्राकुमारी चौहान

देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी… Continue reading ठुकरा दो या प्यार करो / सुभद्राकुमारी चौहान

यह कदम्ब का पेड़ / सुभद्राकुमारी चौहान

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥ ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली। किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली॥ तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता। उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता॥ वहीं बैठ फिर… Continue reading यह कदम्ब का पेड़ / सुभद्राकुमारी चौहान

साध / सुभद्राकुमारी चौहान

मृदुल कल्पना के चल पँखों पर हम तुम दोनों आसीन। भूल जगत के कोलाहल को रच लें अपनी सृष्टि नवीन।। वितत विजन के शांत प्रांत में कल्लोलिनी नदी के तीर। बनी हुई हो वहीं कहीं पर हम दोनों की पर्ण-कुटीर।। कुछ रूखा, सूखा खाकर ही पीतें हों सरिता का जल। पर न कुटिल आक्षेप जगत… Continue reading साध / सुभद्राकुमारी चौहान

जलियाँवाला बाग में बसंत / सुभद्राकुमारी चौहान

यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते, काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते। कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से, वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे। परिमल-हीन पराग दाग सा बना पड़ा है, हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है। ओ, प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना, यह है शोक-स्थान… Continue reading जलियाँवाला बाग में बसंत / सुभद्राकुमारी चौहान

मेरा नया बचपन / सुभद्राकुमारी चौहान

बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी। गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥ चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद। कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद? ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी? बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥ किये दूध के कुल्ले मैंने… Continue reading मेरा नया बचपन / सुभद्राकुमारी चौहान

झांसी की रानी / सुभद्राकुमारी चौहान

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी… Continue reading झांसी की रानी / सुभद्राकुमारी चौहान

ऋतु फागुन नियरानी हो / कबीर

ऋतु फागुन नियरानी हो, कोई पिया से मिलावे। सोई सुदंर जाकों पिया को ध्यान है, सोई पिया की मनमानी, खेलत फाग अंग नहिं मोड़े, सतगुरु से लिपटानी। इक इक सखियाँ खेल घर पहुँची, इक इक कुल अरुझानी। इक इक नाम बिना बहकानी, हो रही ऐंचातानी।। पिय को रूप कहाँ लगि बरनौं, रूपहि माहिं समानी। जौ… Continue reading ऋतु फागुन नियरानी हो / कबीर

निरंजन धन तुम्हरो दरबार / कबीर

निरंजन धन तुम्हरो दरबार । जहाँ न तनिक न्याय विचार ।। रंगमहल में बसें मसखरे, पास तेरे सरदार । धूर-धूप में साधो विराजें, होये भवनिधि पार ।। वेश्या ओढे़ खासा मखमल, गल मोतिन का हार । पतिव्रता को मिले न खादी सूखा ग्रास अहार ।। पाखंडी को जग में आदर, सन्त को कहें लबार ।… Continue reading निरंजन धन तुम्हरो दरबार / कबीर

मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा / कबीर

मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा ।। आसन मारि मंदिर में बैठे, ब्रम्ह-छाँड़ि पूजन लगे पथरा ।। कनवा फड़ाय जटवा बढ़ौले, दाढ़ी बाढ़ाय जोगी होई गेलें बकरा ।। जंगल जाये जोगी धुनिया रमौले काम जराए जोगी होए गैले हिजड़ा ।। मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ो रंगौले, गीता बाँच के होय गैले लबरा ।। कहहिं कबीर सुनो… Continue reading मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा / कबीर

साधो ये मुरदों का गांव / कबीर

साधो ये मुरदों का गांव पीर मरे पैगम्बर मरिहैं मरि हैं जिन्दा जोगी राजा मरिहैं परजा मरिहै मरिहैं बैद और रोगी चंदा मरिहै सूरज मरिहै मरिहैं धरणि आकासा चौदां भुवन के चौधरी मरिहैं इन्हूं की का आसा नौहूं मरिहैं दसहूं मरिहैं मरि हैं सहज अठ्ठासी तैंतीस कोट देवता मरि हैं बड़ी काल की बाजी नाम… Continue reading साधो ये मुरदों का गांव / कबीर