सभा का खेल / सुभद्राकुमारी चौहान

सभा सभा का खेल आज हम खेलेंगे जीजी आओ, मैं गाधी जी, छोटे नेहरू तुम सरोजिनी बन जाओ। मेरा तो सब काम लंगोटी गमछे से चल जाएगा, छोटे भी खद्दर का कुर्ता पेटी से ले आएगा। लेकिन जीजी तुम्हें चाहिए एक बहुत बढ़िया सारी, वह तुम माँ से ही ले लेना आज सभा होगी भारी।… Continue reading सभा का खेल / सुभद्राकुमारी चौहान

स्मृतियाँ / सुभद्राकुमारी चौहान

क्या कहते हो? किसी तरह भी भूलूँ और भुलाने दूँ? गत जीवन को तरल मेघ-सा स्मृति-नभ में मिट जाने दूँ? शान्ति और सुख से ये जीवन के दिन शेष बिताने दूँ? कोई निश्चित मार्ग बनाकर चलूँ तुम्हें भी जाने दूँ? कैसा निश्चित मार्ग? ह्रदय-धन समझ नहीं पाती हूँ मैं वही समझने एक बार फिर क्षमा… Continue reading स्मृतियाँ / सुभद्राकुमारी चौहान

बालिका का परिचय / सुभद्राकुमारी चौहान

यह मेरी गोदी की शोभा, सुख सोहाग की है लाली. शाही शान भिखारन की है, मनोकामना मतवाली . दीप-शिखा है अँधेरे की, घनी घटा की उजियाली . उषा है यह काल-भृंग की, है पतझर की हरियाली . सुधाधार यह नीरस दिल की, मस्ती मगन तपस्वी की. जीवित ज्योति नष्ट नयनों की, सच्ची लगन मनस्वी की.… Continue reading बालिका का परिचय / सुभद्राकुमारी चौहान

प्रभु तुम मेरे मन की जानो / सुभद्राकुमारी चौहान

मैं अछूत हूँ, मंदिर में आने का मुझको अधिकार नहीं है। किंतु देवता यह न समझना, तुम पर मेरा प्यार नहीं है॥ प्यार असीम, अमिट है, फिर भी पास तुम्हारे आ न सकूँगी। यह अपनी छोटी सी पूजा, चरणों तक पहुँचा न सकूँगी॥ इसीलिए इस अंधकार में, मैं छिपती-छिपती आई हूँ। तेरे चरणों में खो… Continue reading प्रभु तुम मेरे मन की जानो / सुभद्राकुमारी चौहान

मेरी टेक / सुभद्राकुमारी चौहान

निर्धन हों धनवान, परिश्रम उनका धन हो। निर्बल हों बलवान, सत्यमय उनका मन हो॥ हों स्वाधीन गुलाम, हृदय में अपनापन हो। इसी आन पर कर्मवीर तेरा जीवन हो॥ तो, स्वागत सौ बार करूँ आदर से तेरा। आ, कर दे उद्धार, मिटे अंधेर-अंधेरा॥

बिदाई / सुभद्राकुमारी चौहान

कृष्ण-मंदिर में प्यारे बंधु पधारो निर्भयता के साथ। तुम्हारे मस्तक पर हो सदा कृष्ण का वह शुभचिंतक हाथ॥ तुम्हारी दृढ़ता से जग पड़े देश का सोया हुआ समाज। तुम्हारी भव्य मूर्ति से मिले शक्ति वह विकट त्याग की आज॥ तुम्हारे दुख की घड़ियाँ बनें दिलाने वाली हमें स्वराज्य। हमारे हृदय बनें बलवान तुम्हारी त्याग मूर्ति… Continue reading बिदाई / सुभद्राकुमारी चौहान

स्वदेश के प्रति / सुभद्राकुमारी चौहान

आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ, स्वागत करती हूँ तेरा। तुझे देखकर आज हो रहा, दूना प्रमुदित मन मेरा॥ आ, उस बालक के समान जो है गुरुता का अधिकारी। आ, उस युवक-वीर सा जिसको विपदाएं ही हैं प्यारी॥ आ, उस सेवक के समान तू विनय-शील अनुगामी सा। अथवा आ तू युद्ध-क्षेत्र में कीर्ति-ध्वजा का स्वामी सा॥… Continue reading स्वदेश के प्रति / सुभद्राकुमारी चौहान

विजयी मयूर / सुभद्राकुमारी चौहान

तू गरजा, गरज भयंकर थी, कुछ नहीं सुनाई देता था। घनघोर घटाएं काली थीं, पथ नहीं दिखाई देता था॥ तूने पुकार की जोरों की, वह चमका, गुस्से में आया। तेरी आहों के बदले में, उसने पत्थर-दल बरसाया॥ तेरा पुकारना नहीं रुका, तू डरा न उसकी मारों से। आखिर को पत्थर पिघल गए, आहों से और… Continue reading विजयी मयूर / सुभद्राकुमारी चौहान

प्रतीक्षा / सुभद्राकुमारी चौहान

बिछा प्रतीक्षा-पथ पर चिंतित नयनों के मदु मुक्ता-जाल। उनमें जाने कितनी ही अभिलाषाओं के पल्लव पाल॥ बिता दिए मैंने कितने ही व्याकुल दिन, अकुलाई रात। नीरस नैन हुए कब करके उमड़े आँसू की बरसात॥ मैं सुदूर पथ के कलरव में, सुन लेने को प्रिय की बात। फिरती विकल बावली-सी सहती अपवादों के आघात॥ किंतु न… Continue reading प्रतीक्षा / सुभद्राकुमारी चौहान

विदा / सुभद्राकुमारी चौहान

अपने काले अवगुंठन को रजनी आज हटाना मत। जला चुकी हो नभ में जो ये दीपक इन्हें बुझाना मत॥ सजनि! विश्व में आज तना रहने देना यह तिमिर वितान। ऊषा के उज्ज्वल अंचल में आज न छिपना अरी सुजान॥ सखि! प्रभात की लाली में छिन जाएगी मेरी लाली। इसीलिए कस कर लपेट लो, तुम अपनी… Continue reading विदा / सुभद्राकुमारी चौहान