ऋतु फागुन नियरानी हो / कबीर

ऋतु फागुन नियरानी हो, कोई पिया से मिलावे। सोई सुदंर जाकों पिया को ध्यान है, सोई पिया की मनमानी, खेलत फाग अंग नहिं मोड़े, सतगुरु से लिपटानी। इक इक सखियाँ खेल घर पहुँची, इक इक कुल अरुझानी। इक इक नाम बिना बहकानी, हो रही ऐंचातानी।। पिय को रूप कहाँ लगि बरनौं, रूपहि माहिं समानी। जौ… Continue reading ऋतु फागुन नियरानी हो / कबीर

निरंजन धन तुम्हरो दरबार / कबीर

निरंजन धन तुम्हरो दरबार । जहाँ न तनिक न्याय विचार ।। रंगमहल में बसें मसखरे, पास तेरे सरदार । धूर-धूप में साधो विराजें, होये भवनिधि पार ।। वेश्या ओढे़ खासा मखमल, गल मोतिन का हार । पतिव्रता को मिले न खादी सूखा ग्रास अहार ।। पाखंडी को जग में आदर, सन्त को कहें लबार ।… Continue reading निरंजन धन तुम्हरो दरबार / कबीर

मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा / कबीर

मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा ।। आसन मारि मंदिर में बैठे, ब्रम्ह-छाँड़ि पूजन लगे पथरा ।। कनवा फड़ाय जटवा बढ़ौले, दाढ़ी बाढ़ाय जोगी होई गेलें बकरा ।। जंगल जाये जोगी धुनिया रमौले काम जराए जोगी होए गैले हिजड़ा ।। मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ो रंगौले, गीता बाँच के होय गैले लबरा ।। कहहिं कबीर सुनो… Continue reading मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा / कबीर

साधो ये मुरदों का गांव / कबीर

साधो ये मुरदों का गांव पीर मरे पैगम्बर मरिहैं मरि हैं जिन्दा जोगी राजा मरिहैं परजा मरिहै मरिहैं बैद और रोगी चंदा मरिहै सूरज मरिहै मरिहैं धरणि आकासा चौदां भुवन के चौधरी मरिहैं इन्हूं की का आसा नौहूं मरिहैं दसहूं मरिहैं मरि हैं सहज अठ्ठासी तैंतीस कोट देवता मरि हैं बड़ी काल की बाजी नाम… Continue reading साधो ये मुरदों का गांव / कबीर

अवधूता युगन युगन हम योगी / कबीर

अवधूता युगन युगन हम योगी आवै ना जाय मिटै ना कबहूं सबद अनाहत भोगी सभी ठौर जमात हमरी सब ही ठौर पर मेला हम सब माय सब है हम माय हम है बहुरी अकेला हम ही सिद्ध समाधि हम ही हम मौनी हम बोले रूप सरूप अरूप दिखा के हम ही हम तो खेलें कहे… Continue reading अवधूता युगन युगन हम योगी / कबीर

मोको कहां ढूँढे रे बन्दे / कबीर

मोको कहां ढूँढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास में ना तीरथ मे ना मूरत में ना एकान्त निवास में ना मंदिर में ना मस्जिद में ना काबे कैलास में मैं तो तेरे पास में बन्दे मैं तो तेरे पास में ना मैं जप में ना मैं तप में ना मैं बरत उपास में ना… Continue reading मोको कहां ढूँढे रे बन्दे / कबीर

सुपने में सांइ मिले / कबीर

सुपने में सांइ मिले सोवत लिया लगाए आंख न खोलूं डरपता मत सपना है जाए सांइ मेरा बहुत गुण लिखे जो हृदय माहिं पियूं न पाणी डरपता मत वे धोय जाहिं नैना भीतर आव तू नैन झांप तोहे लेउं न मैं देखूं और को न तेही देखण देउं नैना अंतर आव तू ज्यौ हौं नैन… Continue reading सुपने में सांइ मिले / कबीर

माया महा ठगनी हम जानी / कबीर

माया महा ठगनी हम जानी।। तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले मधुरे बानी।। केसव के कमला वे बैठी शिव के भवन भवानी।। पंडा के मूरत वे बैठीं तीरथ में भई पानी।। योगी के योगन वे बैठी राजा के घर रानी।। काहू के हीरा वे बैठी काहू के कौड़ी कानी।। भगतन की भगतिन वे बैठी बृह्मा… Continue reading माया महा ठगनी हम जानी / कबीर

अंखियां तो छाई परी / कबीर

अंखियां तो छाई परी पंथ निहारि निहारि जीहड़ियां छाला परया नाम पुकारि पुकारि बिरह कमन्डल कर लिये बैरागी दो नैन मांगे दरस मधुकरी छकै रहै दिन रैन सब रंग तांति रबाब तन बिरह बजावै नित और न कोइ सुनि सकै कै सांई के चित

मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया / कबीर

मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया। पांच तत की बनी चुनरिया सोरह सौ बैद लाग किया। यह चुनरी मेरे मैके ते आयी ससुरे में मनवा खोय दिया। मल मल धोये दाग न छूटे ग्यान का साबुन लाये पिया। कहत कबीर दाग तब छुटि है जब साहब अपनाय लिया।