हयात इंसाँ की सर ता पा ज़बाँ मालूम होती है ये दुनिया इंक़िलाब-ए-आसमाँ मालूम होती है मुकद्दर है ख़िज़ाँ के ख़ून से ऐश-ए-बहार-ए-गुल ख़िज़ाँ की रुत बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ मालूम होती है मुझे ना-कामी-ए-पैहम से मायूसी नहीं होती अभी उम्मीद मेरी नौ-जवाँ मालूम होती है कोई जब नाला करता है कलेजा थाम लेता हूँ फ़ुग़ान-ए-ग़ैर भी अपनी… Continue reading हयात इंसाँ की सर ता पा ज़बाँ मालूम होती है / अख़्तर अंसारी
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हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें / अख़्तर अंसारी
हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें इक दुख भरी कहानी कहती हैं मेरी आँखें जज़्बात-ए-दिल की शिद्दत सहती हैं मेरी आँखें गुल-रंग और शफ़क़-गूँ रहती हैं मेरी आँखें ऐश ओ तरब के जलसे दर्द अलम के मंज़र क्या कुछ न हम ने देखा कहती हैं मेरी आँखें जब से दिल ओ जिगर की… Continue reading हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें / अख़्तर अंसारी
ग़म-ज़दा हैं मुबतला-ए-दर्द हैं ना-शाद हैं / अख़्तर अंसारी
ग़म-ज़दा हैं मुबतला-ए-दर्द हैं ना-शाद हैं हम किसी अफ़साना-ए-ग़म-नाक के अफ़राद हैं गर्दिश-ए-अफ़लाक के हाथों बहुत बर्बाद हैं हम लब-ए-अय्याम पर इक दुख भारी फ़रियाद हैं हाफ़िज़े पर इशरतों के नक़्श बाक़ी हैं अभी तू ने जो सदमे सही ऐ दिल तुझे भी याद हैं रात भर कहते हैं तारे दिल से रूदाद-ए-शबाब इन को… Continue reading ग़म-ज़दा हैं मुबतला-ए-दर्द हैं ना-शाद हैं / अख़्तर अंसारी
ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं / अख़्तर अंसारी
ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं दिल-ए-सितम-ज़दा है राज़-दाँ हूँ मैं ज़्यादा इस से कोई आज तक बता न सका के एक नुक़्ता-ए-ना-क़ाबिल-ए-बयाँ हूँ मैं नज़र के सामने कौंदी थी एक बिजली सी मुझे बताओ ख़ुदारा के अब कहाँ हूँ मैं ख़िज़ाँ ने लूट लिया गुलशन-ए-शबाब मगर किसी बहार के अरमान में जवाँ हूँ मैं… Continue reading ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं / अख़्तर अंसारी
दिन मुरादों के ऐश की रातें / अख़्तर अंसारी
दिन मुरादों के ऐश की रातें हाए क्या हो गईं वो बरसातें रात को बाग़ में मुलाक़ातें याद हैं जैसे ख़्वाब की बातें हसरतें सर्द आहें गर्म आँसू लाई है बर्शगाल सौग़ातें ख़्वार हैं यूँ मेरे शबाब के दिन जैसे जाड़ों की चाँदनी रातें दिल ये कहता है कुंज-ए-राहत हूँ देखना ग़म-नसीब की बातें जिन… Continue reading दिन मुरादों के ऐश की रातें / अख़्तर अंसारी
दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है / अख़्तर अंसारी
दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है वो आग बुझ गई लेकिन गुदाज़ बाक़ी है नियाज़-केश भी मेरी तरह न हो कोई उमीद मर चुकी ज़ौक-ए-नियाज़ बाक़ी है वो इब्तिदा है मोहब्बत की लज्ज़तें वल्लाह के अब भी रूह में इक एहतराज़ बाक़ी है न साज़-ए-दिल है अब ‘अख़्तर’ न हुस्न की मिज़राब मगर… Continue reading दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है / अख़्तर अंसारी
दिल के अरमान दिल को छोड़ गए / अख़्तर अंसारी
दिल के अरमान दिल को छोड़ गए आह मुँह इस जहाँ से मोड़ गए वो उमंगें नहीं तबीअत में क्या कहें जी को सदमे तोड़ गए बाद-ए-बास के मुसलसल दौर साग़र-ए-आरज़ू फोड़ गए मिट गए वो नज़्ज़ारा-हा-ए-जमील लेकिन आँखों में अक्स छोड़ गए हम थे इशरत की गहरी नींदें थीं आए आलाम और झिंझोड़ गए
चीर कर सीने को रख दे गर न पाए / अख़्तर अंसारी
चीर कर सीने को रख दे गर न पाए ग़म-गुसार दिल की बातें दिल ही से कोई यहाँ कब तक करे मुबतला-ए-दर्द होने की ये लज़्ज़त देखिये क़िस्सा-ए-ग़म हो किसी का दिल मेरा धक धक करे सब की क़िस्मत इक न इक दिन जागती है हाँ बजा ज़िंदगी क्यूँ कर गुज़ारे वो जो इस में… Continue reading चीर कर सीने को रख दे गर न पाए / अख़्तर अंसारी
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं / अख़्तर अंसारी
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं एक बिगड़ी हुई तस्वीर-ए-जवानी हूँ मैं आग बन कर जो कभी दिल में निहाँ रहता था आज दुनिया में उसी ग़म की निशानी हूँ मैं हाए क्या क़हर है मरहूम जवानी की याद दिल से कहती है के ख़ंजर की रवानी हूँ मैं आलम-अफ़रोज़ तपिश तेरे लिए… Continue reading अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं / अख़्तर अंसारी
मकर संक्रान्ति / ज्ञानेन्द्रपति
रात को मिलता है देर से घर लौटते जब सरे राह स्ट्रीट लाईट की रोशनी का पोचारा पुते फलक पर एक परछाईं प्रसन्न हाथ हिलाती है वह एक पतंग है बिजली के तार पर अटकी हुई एक पतंग रह-रह हिलाती अपना चंचल माथ नभ को ललकती एक वही तो है इस पृथ्वी पर पार्थिवता की… Continue reading मकर संक्रान्ति / ज्ञानेन्द्रपति