ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं / अख़्तर अंसारी

ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं दिल-ए-सितम-ज़दा है राज़-दाँ हूँ मैं ज़्यादा इस से कोई आज तक बता न सका के एक नुक़्ता-ए-ना-क़ाबिल-ए-बयाँ हूँ मैं नज़र के सामने कौंदी थी एक बिजली सी मुझे बताओ ख़ुदारा के अब कहाँ हूँ मैं ख़िज़ाँ ने लूट लिया गुलशन-ए-शबाब मगर किसी बहार के अरमान में जवाँ हूँ मैं… Continue reading ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं / अख़्तर अंसारी

दिन मुरादों के ऐश की रातें / अख़्तर अंसारी

दिन मुरादों के ऐश की रातें हाए क्या हो गईं वो बरसातें रात को बाग़ में मुलाक़ातें याद हैं जैसे ख़्वाब की बातें हसरतें सर्द आहें गर्म आँसू लाई है बर्शगाल सौग़ातें ख़्वार हैं यूँ मेरे शबाब के दिन जैसे जाड़ों की चाँदनी रातें दिल ये कहता है कुंज-ए-राहत हूँ देखना ग़म-नसीब की बातें जिन… Continue reading दिन मुरादों के ऐश की रातें / अख़्तर अंसारी

दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है / अख़्तर अंसारी

दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है वो आग बुझ गई लेकिन गुदाज़ बाक़ी है नियाज़-केश भी मेरी तरह न हो कोई उमीद मर चुकी ज़ौक-ए-नियाज़ बाक़ी है वो इब्तिदा है मोहब्बत की लज्ज़तें वल्लाह के अब भी रूह में इक एहतराज़ बाक़ी है न साज़-ए-दिल है अब ‘अख़्तर’ न हुस्न की मिज़राब मगर… Continue reading दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है / अख़्तर अंसारी