अभी आखें खुली हैं और क्या क्या देखने को मुझे पागल किया उस ने तमाशा देखने को वो सूरत देख ली हम ने तो फिर कुछ भी न देखा अभी वर्ना पड़ी थी एक दुनिया देखने को तमन्ना की किसे परवा के सोने जागने में मुयस्सर हैं बहुत ख़्वाब-ए-तमन्ना देखने को ब-ज़ाहिर मुतमइन मैं भी… Continue reading अभी आखें खुली हैं और क्या क्या / ‘ज़फ़र’ इक़बाल
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राम नाम जगसार और सब झुठे बेपार / छत्रनाथ
राम नाम जगसार और सब झुठे बेपार। तप करु तूरी, ज्ञान तराजू, मन करु तौलनिहार। षटधारी डोरी तैहि लागे, पाँच पचीस पेकार। सत्त पसेरी, सेर करहु नर, कोठी संत समाज। रकम नरायन राम खरीदहुँ, बोझहुँ, तनक जहाज। बेचहुँ विषय विषम बिनु कौड़ी, धर्म करहु शोभकार। मंदिर धीर, विवेक बिछौना, नीति पसार बजार। ऐसो सुघर सौदागर… Continue reading राम नाम जगसार और सब झुठे बेपार / छत्रनाथ
जय, देवि, दुर्गे, दनुज गंजनि / छत्रनाथ
जय, देवि, दुर्गे, दनुज गंजनि, भक्त-जन-भव-भार-भंजनि, अरुण गति अति नैन खंजनि, जय निरंजनि हे। जय, घोर मुख-रद विकट पाँती, नव-जलद-तन, रुचिर काँती, मारु कर गहि सूल, काँती, असुर-छाती हे। जय, सिंह चढ़ि कत समर धँसि-धँसि, विकट मुख विकराल हँसि-हँसि, शुंभ कच गहि कएल कर बसि, मासु गहि असि हे। जय अमर अरि सिर काटु छट्… Continue reading जय, देवि, दुर्गे, दनुज गंजनि / छत्रनाथ
आश्चर्य / छगनलाल सोनी
भीष्म नहीं चाहते थे परिवार का बिखराव कृष्ण नहीं चाहते थे एक युग की समप्ति धृतराष्ट्र नहीं चाहते थे राज-पतन द्रौपदी नहीं चाहती थी- चीर हरण। इसके बावजूद वह सब हुआ जो नहीं होना था आज हमारा न चाहना हमारी चुप्पी में चाहने की स्वीकृति ही तो है तालियों से झर रही है शर्म उतर… Continue reading आश्चर्य / छगनलाल सोनी
माँ / छगनलाल सोनी
माँ तुम्हें पढ़कर तुम्हारी उँगली की धर कलम गढ़ना चाहता हूँ तुम सी ही कोई कृति तुम्हारे हृदय के विराट विस्तार में पसरकर सोचता हूँ मैं और खो जाता हूँ कल्पना लोक में फिर भी सम्भव नहीं तुम्हें रचना शब्दों का आकाश छोटा पड़ जाता है हर बार तुम्हारी माप से माँ तुम धरती हो।
भारत की जय / चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’
हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, क्रिस्ती, मुसलमान पारसीक, यहूदी और ब्राह्मन भारत के सब पुत्र, परस्पर रहो मित्र रखो चित्ते गणना सामान मिलो सब भारत संतान एक तन एक प्राण गाओ भारत का यशोगान
झुकी कमान / चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’
(1) आए प्रचंड रिपु, शब्द सुन उन्हीं का, भेजी सभी जगह एक झुकी कमान ज्यों युद्ध चिह्न समझे सब लोग धाए, त्यों साथ थी कह रही यह व्योम वाणी – ‘सुना नहीं क्या रणशंखनाद ? चलो पके खेत किसान छोड़ो पक्षी इन्हें खाएँ, तुम्हें पड़ा क्या? भाले भिदाओ, अब खड्ग खोलो हवा इन्हें साफ किया… Continue reading झुकी कमान / चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’
बिल्ली बोली / चंद्रदत्त ‘इंदु’
दिल्ली में कितने दरवाजे? दिल्ली में हैं कितने राजे? कितनी लंबी है यह दिल्ली? कहाँ गढ़ी दिल्ली की किल्ली? दिल्ली कब से कहाँ गई? कब टूटी, कब बनी नई? दूध-मलाई खिलवाओ तो सारे उत्तर अभी बताऊँ! बिल्ली बोली म्याऊँ-म्याऊँ! मैं बिल्ली मंत्री के घर की, मुझे खबर है दुनिया भर की। मैं घूमती सारा इंग्लैंड,… Continue reading बिल्ली बोली / चंद्रदत्त ‘इंदु’
छोटा अन्ने / चंद्रदत्त ‘इंदु’
छोटा अन्ने, मीठे गन्ने बड़े मजे से खाता, कोई उससे गन्ना माँगे उसको जीभ चिढ़ाता! मम्मी बोली-‘अन्ने बेटा, मुझको दे दो गन्ने!’ ‘ये कड़वे हैं, तुम मत खाओ!’ झट से बोला अन्ने।
अट्टू-बट्टू / चंद्रदत्त ‘इंदु’
एक था अट्टू, एक था बट्टू एक था उनका घोड़ा, अट्टू बैठा, बट्टू बैठा तड़-तड़ मारा कोडा। कोड़ा खाकर घोड़ा भागा सँभल न पाया बट्टू, गिरा जमीं पर, रोकर बोला- घोड़ा बड़ा लिखट्टू!