बिल्ली बोली / चंद्रदत्त ‘इंदु’

दिल्ली में कितने दरवाजे? दिल्ली में हैं कितने राजे? कितनी लंबी है यह दिल्ली? कहाँ गढ़ी दिल्ली की किल्ली? दिल्ली कब से कहाँ गई? कब टूटी, कब बनी नई? दूध-मलाई खिलवाओ तो सारे उत्तर अभी बताऊँ! बिल्ली बोली म्याऊँ-म्याऊँ! मैं बिल्ली मंत्री के घर की, मुझे खबर है दुनिया भर की। मैं घूमती सारा इंग्लैंड,… Continue reading बिल्ली बोली / चंद्रदत्त ‘इंदु’

छोटा अन्ने / चंद्रदत्त ‘इंदु’

छोटा अन्ने, मीठे गन्ने बड़े मजे से खाता, कोई उससे गन्ना माँगे उसको जीभ चिढ़ाता! मम्मी बोली-‘अन्ने बेटा, मुझको दे दो गन्ने!’ ‘ये कड़वे हैं, तुम मत खाओ!’ झट से बोला अन्ने।

अट्टू-बट्टू / चंद्रदत्त ‘इंदु’

एक था अट्टू, एक था बट्टू एक था उनका घोड़ा, अट्टू बैठा, बट्टू बैठा तड़-तड़ मारा कोडा। कोड़ा खाकर घोड़ा भागा सँभल न पाया बट्टू, गिरा जमीं पर, रोकर बोला- घोड़ा बड़ा लिखट्टू!

एक थी गुड्डी / चंद्रदत्त ‘इंदु’

चिट्ठी पढ़ी तुम्हारी गुड्डी, उल्लू हिला रहा था ठुड्डी। शैतानी से बाज न आता, चपत लगा, बाहर भग जाता। पापा जब दफ्तर से आते, कुल्हड़ भर रसगुल्ले लाते। कला दिखाता काला बंदर, मैना है पिंजरे के अंदर। भालू दादा आँख नचाते, हाथी दादा सूँड हिलाते। याद तुम्हारी सबको आती, पूसी मौसी यह लिखवाती। खूब लगन… Continue reading एक थी गुड्डी / चंद्रदत्त ‘इंदु’

बोल मेरी मछली / चंद्रदत्त ‘इंदु’

हरा समंदर गोपी चंदर, बोल मेरी मछली कितना पानी? ठहर-ठहर तू चड्ढी लेता, ऊपर से करता शैतानी! नीचे उतर अभी बतलाऊँ, कैसी मछली, कितना पानी? मैं ना उतरूँ, चड्ढी लूँगा, ना दोगी कुट्टी कर दूँगा! या मुझको तुम लाकर दे दो, चना कुरकुरा या गुड़धानी! दद्दा लाए गोरी गैया, खूब मिलेगी दूध-मलैया! आओ भैया नीचे… Continue reading बोल मेरी मछली / चंद्रदत्त ‘इंदु’