कहाँ गई वे मेरी कविताएँ क़िताबों के पन्नों में दबा दी गई थीं जो मेरी कविताएँ जो छपने वाली थीं क़िताबों में जिनके लिए सन्तापों की गठरी सिर पर धरे भागता रहा इस नगर से उस नगर तक जिनके लिए हाथियों के पैरों तले कुचला जाता रहा हूँ चींटियों जैसा जिनके लिए मधुमक्खियों को छत्तों… Continue reading कहाँ हैं वे मेरी कविताएँ / आग्नेय
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वे अब भी हँस रहे हैं / आग्नेय
अब नहीं चमकता है चन्द्रमा बुझ चुकी है शाम से जलने वाली आग घुप्प अंधेरे में वे सब हँस रहे हैं उनके साथ हँस रहे हैं उनके बच्चे, उनकी बकरियाँ उनके गदहे और उनके कुत्ते मेरे घर और उनके घुप्प अंधेरे के बीच पसरी है एक सड़क दस क़दमों में पार की जा सकने वाली… Continue reading वे अब भी हँस रहे हैं / आग्नेय
मेरा घर, उसका घर / आग्नेय
एक चिड़िया प्रतिदिन मेरे घर आती है जानता नहीं हूँ उसका नाम सिर्फ़ पहचानता हूँ उसको वह चहचहाती है देर तक ढूँढती है दाने : और फिर उड़ जाती है अपने घर की ओर पर उसका घर कहाँ है? घर है भीउसका या नहीं है उसका घर? यदि उसका घर है तब भी उसका घर… Continue reading मेरा घर, उसका घर / आग्नेय
युद्ध / आग्नेय
एक माँ सुनकर अपने बेटे की मृत्यु का समाचार, जला देती है दूसरी माँओं के बेटों को अपने फूस के घर में आए थे जो अतिथि बनकर उसके घर में
कल / आग्नेय
सीना तानकर चलता हूँ दिन-रात गजराज की तरह झूमता हूँ सड़कों पर अपने मित्रों और शत्रुओं के समक्ष दम्भ से भरी रहती है मेरी मुखाकृति–मेरी वाणी अलस्स सवेरे गुज़रता हूँ उस सड़क पर जिसके बाईं ओर शमशान है विनम्र हो जाता हूँ चींटी की तरह आज स्वयं चलकर आया हूँ यहाँ तक कल लाया जाऊंगा… Continue reading कल / आग्नेय
रतजगा / आग्नेय
मुझे जागते रहना है– एक कथा और सुनाओ ख़त्म हो जाए तो और कथाएँ सुनाओ समुद्र में रहने वाली मछलियों साइबेरिया से आने वाली बत्तखों बब्बर शेर, चालक लोमड़ी, हँसते लकड़बग्घे की कथाएँ परिन्दों, दरख़्तों और जंगलों रेशम बुनते कीड़ों, घड़ियालों ध्रुवों पर जमी बर्फ़, प्राणरक्षक औषधियों और सदाबहार वनस्पतियों की कथाएँ इन सबकी कथाएँ… Continue reading रतजगा / आग्नेय
सम्पूर्णता / आग्नेय
वह आकाश की ओर देखती रही जबकि मैं उसके निकट छाया की तरह लिपटा था, उसका हाथ दूसरी स्त्री के कन्धे पर था, जबकि मैं उसके चारों ओर हवा की तरह ठहरा था, भरी-पूरी स्त्री का भरा-पूरा प्यार अन्तिम इच्छा की तरह जी लेने के लिए मैं उसे हरदम पल्लवित और फलवती पृथ्वी की सम्पूर्णता… Continue reading सम्पूर्णता / आग्नेय
गमन / आग्नेय
फूल के बोझ से टूटती नहीं है टहनी फूल ही अलग कर दिया जाता है टहनी से उसी तरह टूटता है संसार टूटता जाता है संसार– मेरा और तुम्हारा चमत्कार है या अत्याचार है इस टूटते जाने में सिर्फ़ जानता है टहनी से अलग कर दिया गया फूल
ज़र्रा भी अगर रंग-ए-ख़ुदाई नहीं देता / ‘शाएर’ क़ज़लबाश
ज़र्रा भी अगर रंग-ए-ख़ुदाई नहीं देता अंधा है तुझे कुछ भी दिखाई नहीं देता दिल की बुरी आदत है जो मिटता है बुतों पर वल्लाह मैं उन को तो बुराई नहीं देता किस तरह जवानी में चलूँ राह पे नासेह ये उम्र ही ऐसी है सुझाई नहीं देता गिरता है उसी वक़्त बशर मुँह के… Continue reading ज़र्रा भी अगर रंग-ए-ख़ुदाई नहीं देता / ‘शाएर’ क़ज़लबाश
उन्स अपने में कहीं पाया न बे-गाने / ‘शाएर’ क़ज़लबाश
उन्स अपने में कहीं पाया न बे-गाने में था क्या नशा है सारा आलम एक पैमाने में था आह इतनी काविशें ये शोर-ओ-शर ये इज़्तिराब एक चुटकी ख़ाक की दो पर ये परवाने में था आप ही उस ने अनलहक़ कह दिया इलज़ाम क्या होश किस ने ले लिया था होश दीवाने में था अल्लाह… Continue reading उन्स अपने में कहीं पाया न बे-गाने / ‘शाएर’ क़ज़लबाश