न साथ देगा कोई राह आश्ना मेरा जुदा है सारे ज़माने से रास्ता मेरा गुज़र के आई हूँ मैं ग़म के रेग-ज़ारों से नज़र उदास है दिल है दुखा हुआ मेरा न जाने किस लिए क़ातिल के अश्क भर आए फ़राज-ए-दार पे जब सामना हुआ मेरा दयार-ए-जाँ में फ़रोज़ँा रहेगी शम्मा-ए-हयात समझ लिया तेरी आँखों… Continue reading न साथ देगा कोई राह आश्ना मेरा / ‘गुलनार’ आफ़रीन
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न पूछ ऐ मेरे ग़म-ख़्वार क्या तमन्ना थी / ‘गुलनार’ आफ़रीन
न पूछ ऐ मेरे ग़म-ख़्वार क्या तमन्ना थी दिल-ए-हज़ीं में भी आबाद एक दुनिया थी हर इक नज़र थी हमारे ही चाक-दामाँ पर हर एक साअत-ए-ग़म जैसे इक तमाशा थी हमें भी अब दर ओ दीवार घर के याद आए जो घर में थे तो हमें आरज़ू-ए-सहरा थी कोई बचाता हमें फिर भी डूब ही… Continue reading न पूछ ऐ मेरे ग़म-ख़्वार क्या तमन्ना थी / ‘गुलनार’ आफ़रीन
हमारा नाम पुकारे हमारे घर आए / ‘गुलनार’ आफ़रीन
हमारा नाम पुकारे हमारे घर आए ये दिल तलाश में जिस की है वो नज़र आए न जाने शहर-ए-निगाराँ पे क्या गुज़रती है फ़जा-ए-दश्त-आलम कोई तो ख़बर आए निशान भूल गई हूँ मैं राह-ए-मंज़िल का ख़ुदा करे के मुझे याद-ए-रह-गुज़र आए मैं आँधियों में भी फूलों के रंज पढ़ लूँगी तेरे बदन की महक लौट… Continue reading हमारा नाम पुकारे हमारे घर आए / ‘गुलनार’ आफ़रीन
दिल ने इक आह भरी आँख में आँसू आए / ‘गुलनार’ आफ़रीन
दिल ने इक आह भरी आँख में आँसू आए याद ग़म के हमें कुछ और भी पहलू आए ज़ुल्मत-ए-शब में है रू-पोश निशान-ए-मंज़िल अब मुझे राह दिखाने कोई जुगनू आए दिल का ही ज़ख़्म तेरी याद का इक फूल बने मेरे पैहरान-ए-जाँ से तेरी ख़ुश-बू आए तिश्ना-कामों की कहीं प्यास बुझा करती है दश्त को… Continue reading दिल ने इक आह भरी आँख में आँसू आए / ‘गुलनार’ आफ़रीन
आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं / ‘गुलनार’ आफ़रीन
आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं हम गर्दिश-ए-दौराँ के सताए भी वही हैं क्या बात है क्यूँ शहर में अब जी नहीं लगता हालांकि यहाँ अपने पराए भी वही हैं औराक़-ए-दिल-ओ-जाँ पे जिन्हें तुम ने लिखा है नग़मात-ए-आलम हम ने सुनाए भी वही है ऐ जोश-ए-जुनूँ दर्द का आलम भी वही है… Continue reading आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं / ‘गुलनार’ आफ़रीन
आँख में अश्क लिए ख़ाक लिए दामन में / ‘गुलनार’ आफ़रीन
आँख में अश्क लिए ख़ाक लिए दामन में एक दीवाना नज़र आता है कब से बन में मेरे घर के भी दर ओ बाम कभी जागेंगे धूप निकलेगी कभी तो मेरे भी आँगन में कहिए आईना-ए-सद-फ़स्ल-ए-बहाराँ तुझ को कितने फूलों की महक है तेरे पैराहन में शब-ए-तारीक मेरा रास्ता क्या रोकेगी मेरे आँचल में सितारे… Continue reading आँख में अश्क लिए ख़ाक लिए दामन में / ‘गुलनार’ आफ़रीन
तू तिश्नगी की अज़िय्यत कभी फ़ुरात से पूछ / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’
तू तिश्नगी की अज़िय्यत कभी फ़ुरात से पूछ अँधेरी रात की हसरत अँधेरी रात से पूछ गुज़र रही है जो दिल पर वही हक़ीक़त है ग़म-ए-जहाँ का फ़साना ग़म-ए-हयात से पूछ मैं अपने आप में बैठा हूँ बे-ख़बर तो नहीं नहीं है कोई तअल्लुक़ तो अपनी ज़ात से पूछ दुखी है शहर के लोगों से… Continue reading तू तिश्नगी की अज़िय्यत कभी फ़ुरात से पूछ / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’
तक़दीर के दरबार में अलक़ाब पड़े थे / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’
तक़दीर के दरबार में अलक़ाब पड़े थे हम लोग मगर ख़्वाब में बे-ख़्वाब पड़े थे यख़-बस्ता हवाओं में थी ख़ामोश हक़ीक़त हम सोच की दहलीज़ पे बेताब पड़े थे तस्वीर थी एहसास की तहरीर हवा की सहरा में तिरे अक्स के गिर्दाब पड़े थे कल रात में जिस राह से घर लौट के आया उस… Continue reading तक़दीर के दरबार में अलक़ाब पड़े थे / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’
मेरे भी कुछ गिले थे मगर रात हो गई / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’
मेरे भी कुछ गिले थे मगर रात हो गई कुछ तुम भी कि रहे थे मगर रात हो गई दुनिया से दूर अपने बराबर खड़े रहे ख़्वाबों में जागते थे मगर रात हो गई आसाब सुन रहे थे थकावट की गुफ़्तुगू उलझन थी मसअले थे मगर रात हो गई आँखों की रौशनी में अंधेरे बिखर… Continue reading मेरे भी कुछ गिले थे मगर रात हो गई / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’
मैं भी हुज़ूर-ए-यार बहुत देर तक रहा / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’
मैं भी हुज़ूर-ए-यार बहुत देर तक रहा आँखों में फिर ख़ुमार बहुत देर तक रहा कल शाम मेरे क़त्ल की तारीख़ थी मगर दुश्मन का इंतिज़ार बहुत देर तक रहा अब ले चला है दश्त में मेरा जुनूँ मुझे इस जिन पे इख़्तियार बहुत देर तक रहा वो इंकिशाफ़-ए-ज़ात का लम्हा था खुल गया शायद… Continue reading मैं भी हुज़ूर-ए-यार बहुत देर तक रहा / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’