तू तिश्नगी की अज़िय्यत कभी फ़ुरात से पूछ / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

तू तिश्नगी की अज़िय्यत कभी फ़ुरात से पूछ अँधेरी रात की हसरत अँधेरी रात से पूछ गुज़र रही है जो दिल पर वही हक़ीक़त है ग़म-ए-जहाँ का फ़साना ग़म-ए-हयात से पूछ मैं अपने आप में बैठा हूँ बे-ख़बर तो नहीं नहीं है कोई तअल्लुक़ तो अपनी ज़ात से पूछ दुखी है शहर के लोगों से… Continue reading तू तिश्नगी की अज़िय्यत कभी फ़ुरात से पूछ / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

तक़दीर के दरबार में अलक़ाब पड़े थे / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

तक़दीर के दरबार में अलक़ाब पड़े थे हम लोग मगर ख़्वाब में बे-ख़्वाब पड़े थे यख़-बस्ता हवाओं में थी ख़ामोश हक़ीक़त हम सोच की दहलीज़ पे बेताब पड़े थे तस्वीर थी एहसास की तहरीर हवा की सहरा में तिरे अक्स के गिर्दाब पड़े थे कल रात में जिस राह से घर लौट के आया उस… Continue reading तक़दीर के दरबार में अलक़ाब पड़े थे / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

मेरे भी कुछ गिले थे मगर रात हो गई / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

मेरे भी कुछ गिले थे मगर रात हो गई कुछ तुम भी कि रहे थे मगर रात हो गई दुनिया से दूर अपने बराबर खड़े रहे ख़्वाबों में जागते थे मगर रात हो गई आसाब सुन रहे थे थकावट की गुफ़्तुगू उलझन थी मसअले थे मगर रात हो गई आँखों की रौशनी में अंधेरे बिखर… Continue reading मेरे भी कुछ गिले थे मगर रात हो गई / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

मैं भी हुज़ूर-ए-यार बहुत देर तक रहा / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

मैं भी हुज़ूर-ए-यार बहुत देर तक रहा आँखों में फिर ख़ुमार बहुत देर तक रहा कल शाम मेरे क़त्ल की तारीख़ थी मगर दुश्मन का इंतिज़ार बहुत देर तक रहा अब ले चला है दश्त में मेरा जुनूँ मुझे इस जिन पे इख़्तियार बहुत देर तक रहा वो इंकिशाफ़-ए-ज़ात का लम्हा था खुल गया शायद… Continue reading मैं भी हुज़ूर-ए-यार बहुत देर तक रहा / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

मैं अपनी आँख भी ख़्वाबों से धो नहीं पाया / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

मैं अपनी आँख भी ख़्वाबों से धो नहीं पाया मैं कैसे दूँगा ज़माने को जो नहीं पाया शब-ए-फ़िराक़ थे मौसम अजीब था दिल का मैं अपने सामने बैठा था रो नहीं पाया मिरी ख़ता है कि मैं ख़्वाहिशों के जंगल में कोई सितारा कोई चाँद बो नहीं पाया हसीन फूलों से दीवार-ओ-दर सजाए थे बस… Continue reading मैं अपनी आँख भी ख़्वाबों से धो नहीं पाया / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

कुछ दिल का तअल्लुक़ तो निभाओ कि चला मैं / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

कुछ दिल का तअल्लुक़ तो निभाओ कि चला मैं या टूट के आवाज़ लगाओ कि चला मैं दरपेश मसाफ़त है किसी ख़्वाब-नगर की इक दीप मिरे पास जलाओ कि चला मैं इस शहर के लोगों पे भरोसा नहीं करना ज़ंजीर कोई दर पे लगाओ कि चला मैं ता-दिल में तुम्हारे भी न एहसास-ए-वफ़ा हो जी… Continue reading कुछ दिल का तअल्लुक़ तो निभाओ कि चला मैं / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

किसी भी राह पे रूकना न फ़ैसला कर के / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

किसी भी राह पे रूकना न फ़ैसला कर के बिछड़ रहे हो मिरी जान हौसला कर के मैं इंतिज़ार की हालत में रह नहीं सकता वो इंतिहा भी करे आज इब्तिदा कर के तिरी जुदाई का मंज़र बयाँ नहीं होगा मैं अपना साया भी रक्खूँ अगर जुदा कर के मुझे तो बहर-ए-बला-ख़ेज की ज़रूरत थी… Continue reading किसी भी राह पे रूकना न फ़ैसला कर के / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

बड़े जतन से बड़े सोच से उतारा गया / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

बड़े जतन से बड़े सोच से उतारा गया मिरा सितारा सर-ए-ख़ाक भी सँवारा गया मिरी वफ़ा ने जुनूँ का हिसाब देना था सो आज मुझ को बयाबान से पुकारा गया बस एक ख़ौफ़ था ज़िंदा तिरी जुदाई का मिरा वो आख़िरी दुश्मन भी आज मारा गया मुझे यक़ीन था इस तज-रबे से पहले भी सुना… Continue reading बड़े जतन से बड़े सोच से उतारा गया / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’