तू तिश्नगी की अज़िय्यत कभी फ़ुरात से पूछ / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’

तू तिश्नगी की अज़िय्यत कभी फ़ुरात से पूछ
अँधेरी रात की हसरत अँधेरी रात से पूछ

गुज़र रही है जो दिल पर वही हक़ीक़त है
ग़म-ए-जहाँ का फ़साना ग़म-ए-हयात से पूछ

मैं अपने आप में बैठा हूँ बे-ख़बर तो नहीं
नहीं है कोई तअल्लुक़ तो अपनी ज़ात से पूछ

दुखी है शहर के लोगों से बद-मिज़ाज बहुत
जो पूछना है मोहब्बत से एहतियात से पूछ

तू अपनी ज़ात के अंदर भी झाँक ले ‘साहिल’
ज़मीं को भेद किसी रोज़ काएनात से पूछ

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