अब खाट से उठेंगे मां के दुःख और लम्बे-लम्बे डग भरकर कहीं गायब हो जायेंगे और जो बचेंगी छोटी-मोटी तकलीफें उन्हें बेडियों की तरह वह टांग देगी घर की खपरैल पर अब कुछ दिन सुनायी देगी उसकी असली हंसी कुछ रातें बिना करवटों के होंगी जिन्हें वह खांसकर नहीं बितायेगी और पसलियों का दर्द नहीं… Continue reading दवा वाले दिन / एकांत श्रीवास्तव
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माँ का पत्र / एकांत श्रीवास्तव
गांव से आया है मां का पञ टेढ़े-मेढ़े अक्षर सीधे-सादे शब्द सब कुशल मंगल मेरी कुशलता की कामना पैसों की जरूरत नहीं अच्छे से रहने की हिदायतें और बाकी सब खैरियत मां ने बुलाया नहीं है गांव लेकिन मैं जानता हूं शब्द जो हैं अर्थ वह नहीं है झर रही होंगी नीम की पत्तियां और… Continue reading माँ का पत्र / एकांत श्रीवास्तव
माँ / एकांत श्रीवास्तव
एक : शताब्दियों से उसके हाथ में सुई और धागा है और हमारी फटी कमीज माँ फटी कमीज पर पैबन्द लगाती है और पैबन्द पर काढ़ती है भविष्य का फूल दो : वह रात भर कंदील की तरह जलती है इसके बाद भोर के तारे-सी झिलमिलाती है माँ एक नदी का नाम है जो जीवन… Continue reading माँ / एकांत श्रीवास्तव
चूड़ियाँ / एकांत श्रीवास्तव
चूडियॉं मॉं के हाथ की बजती हैं सुबह-शाम जब छिन चुका है पत्तियों से उनका संगीत जब सूख चुका है नदी का कण्ठ और भूल चुकी है वह बीते दिनों का जल-गीत जब बची नहीं बांसुरी की कोख में एक भी धुन जो उठे कल के सपनों में चूडियॉं मॉं के हाथ की बजती हैं… Continue reading चूड़ियाँ / एकांत श्रीवास्तव
पालना / एकांत श्रीवास्तव
जब भी गाती है मां हिलता है पालना पालने में सोया है नन्हां-सा फूल जिसकी पंखुडियों में बसी है मां के सबसे सुंदर दिनों की खुशबू पालने में सोया है नन्हां-सा सूरज जिसके आसमान में फैला है मॉं की आत्मा का अनन्त नीलापन कांटों और अंधेरे के विरूद्ध गाती है मां हिलता है पालना जब… Continue reading पालना / एकांत श्रीवास्तव
घर / एकांत श्रीवास्तव
यह घर क्या इतनी आसानी से गिर जायेगा जिसमें भरी है मेरे बचपन की चौकड़ी दीवारों में है आज भी पुराने दिनों की खुशबू ओ घर कितनी बार छुपा-छुपी में तेरे दरवाजों के पीछे छुपा मैं कितनी गौरयों ने घोंसले बनाये तेरे रोशनदान में कितनी बार भविष्य की गहरी चिंता में बुदबुदाये पिता कितने दिये… Continue reading घर / एकांत श्रीवास्तव
नदी / एकांत श्रीवास्तव
मुझे याद है आज भी उसके जल का स्वाद उसका रूप रंग गंध यह भी कि धूप में वह नीलम की तरह झिलमिलाती थी यह चिडियों के लौटने और अमरूद के पकने का मौसम है उसे मेरा इंतजार होगा उसके सीने में पड़े होंगे आज भी मेरे पत्थर उसकी लहरों में कहीं होंगे हमारे बचपन… Continue reading नदी / एकांत श्रीवास्तव
पंडुक / एकांत श्रीवास्तव
वे अकेले पक्षी होते हैं जिनकी आवाज से लगातार आबाद रहती हैं जेठ-बैशाख की तपती दोपहरें वे पंडुक होते हैं जो जलती हुई पृथ्वी के झुलसे हुए बबूलों पर बनाते हैं घोंसले पृथ्वी के इस सबसे दुर्गम समय में वे भूलते नहीं हैं प्यार और रचते हैं सपने अंडों में सांस ले रहे पंडुकों के… Continue reading पंडुक / एकांत श्रीवास्तव
पहाड़ / एकांत श्रीवास्तव
पहाड़ बच्चों के सबसे अच्छे दोस्त हैं उनकी छोटी-छोटी इच्छाओं और सपनों के लिए चिन्तित छोटी-सी इच्छा है बच्चारें की कि वे पहाड़ के कंधे पर बैठकर उड़ायें अपनी पतंगें और आवाज दें मीठे पानी की नदी को कि वह उनके गांव के करीब से बहे पहाड़ भर देते हैं बच्चों की कमीज की जेबें… Continue reading पहाड़ / एकांत श्रीवास्तव
गेंदे के फूल / एकांत श्रीवास्तव
इतनी रात गये जाग रहे हैं गेंदे के फूल मुंह किये आकाश की ओर अंधकार एक कमीज की तरह टंगा है रात की खूंटी पर एक बूढ़े आदमी की तरह खांसता है थका हुआ गांव और करवट बदलकर हो जाता है चुप चुप खड़े हैं नींद में डूबे से आम नीम बरगद और जाग रहे… Continue reading गेंदे के फूल / एकांत श्रीवास्तव