गंगा इमली की पत्तियों में छुपकर एक चिड़िया मुँह अँधेरे बोलती है बहुत मीठी आवाज़ में न जाने क्या न जाने किससे और बरसता है पानी आधी नींद में खाट-बिस्तर समेटकर घरों के भीतर भागते हैं लोग कुछ झुँझलाए, कुछ प्रसन्न घटाटोप अंधकार में चमकती है बिजली मूसलधार बरसता है पानी सजल हो जाती हैं… Continue reading अनाम चिड़िया के नाम / एकांत श्रीवास्तव
Tag: शायर
जन्मदिन / एकांत श्रीवास्तव
आकाश के थाल में तारों के झिलमिलाते दीप रखकर उतारो मेरी आरती दूध मोंगरा का सफ़ेद फूल धरो मेरे सिर पर गुलाल से रंगे सोनामासुरी से लगाओ मेरे माथ पर टीका सरई के दोने में भरे कामधेनु के दूध से जुटःआरो मेरा मुँह कि नहीं आई कोई सनसनाती गोली मेरे सीने में कि नहीं भोंका… Continue reading जन्मदिन / एकांत श्रीवास्तव
हम तिलचट्टों की तरह (समर्पण पृष्ठ) / एकांत श्रीवास्तव
हम तिलचट्टों की तरह पैदा नहीं हुए नीम अंधेरों में दीमकों की तरह नहीं सीलन भरी जगहों में उस आदिम स्त्री की कोख में मनु का पुआर बनकर गिरे हम और धरती पर आए हमारी कहानी पत्थरों से आग पैदा करने की कहानी है ।
नागरिक व्यथा / एकांत श्रीवास्तव
किस ऋतु का फूल सूँघूँ किस हवा में साँस लूँ किस डाली का सेब खाऊँ किस सोते का जल पियूँ पर्यावरण वैज्ञानिकों! कि बच जाऊँ किस नगर में रहने जाऊँ कि अकाल न मारा जाऊँ किस कोख से जनम लूँ कि हिन्दू न मुस्लिम कहलाऊँ समाज शास्ञियों! कि बच जाऊँ किस बात पर हँसूँ किस… Continue reading नागरिक व्यथा / एकांत श्रीवास्तव
एक बीज की आवाज़ पर / एकांत श्रीवास्तव
बीज में पेड़ पेड़ में जंगल जंगल में सारी वनस्पति पृथ्वी की और सारी वनस्पति एक बीज में सैकड़ों चिडियों के संगीत से भरा भविष्य और हमारे हरे भरे दिन लिए चीख़ता है बीज पृथ्वी के गर्भ के नीम अँधेरे में- इस बार पानी में सबसे पहले मैं भीगूँ बारिश की पहली फुहार की उँगली… Continue reading एक बीज की आवाज़ पर / एकांत श्रीवास्तव
शब्द-3 / एकांत श्रीवास्तव
जब भी लड़खड़ाता हूँ गिरने से पहले मुझे थाम लेते हैं मेरे शब्द दोस्तों की तरह लपककर घर से निकलने के पहले पूछते हैं- कुछ खाया कि नहीं? लौटने पर आते हैं पड़ोसियों की तरह-‘आपकी चिट्ठी’ मेरे शब्दों को ढूँढते हैं आतताई कि इनमें छिपी हैं उनकी साजिशें शब्द पुराने तारों की तरह बचाकर रखते… Continue reading शब्द-3 / एकांत श्रीवास्तव
शब्द-2 / एकांत श्रीवास्तव
ये शब्द हैं जो पक रहे हैं एक बच्चा अपनी मुट्ठी में भींच रहा है पत्थर कि शब्द पकें और वह फेंके एक चिड़िया का कंठ इंतज़ार में है कि शब्द पकें और वह गाए और शब्द पक रहे हैं पूरे इत्मीनान से चौंक रहा है जंगल हड़बड़ा रहे हैं पहाड़ कि शब्द पक रहे… Continue reading शब्द-2 / एकांत श्रीवास्तव
शब्द-1 / एकांत श्रीवास्तव
शब्द आग हैं जिनकी आँच में सिंक रही है धरती जिनकी रोशनी में गा रहे हैं हम काटते हुए एक लम्बी रात शब्द पत्थर हैं हमारे हाथ के शब्द धार हैं हमारे औजार की हमारे हर दुख में हमारे साथ शब्द दोस्त हैं जिनसे कह सकते हैं हम बिना किसी हिचक के अपनी हर तकलीफ़… Continue reading शब्द-1 / एकांत श्रीवास्तव
जीना है / एकांत श्रीवास्तव
फूलों की आत्मा में बसी ख़ुशबू की तरह जीना है अभी बहुत-बहुत बरस मुश्किलों को उठाना है पत्थरों की तरह और फेंक देना है जल में ‘छपाक’ से हँसना है बार-बार चुकाना है बरसों से बकाया पिछले दुखों का ऋण पोंछना है पृथ्वी के चेहरे से अँधेरे का रँग पानी की आँखों में पूरब का… Continue reading जीना है / एकांत श्रीवास्तव
पानी / एकांत श्रीवास्तव
यह एक आईना है सबसे पहले सूर्य देखता है इसमें अपना चेहरा फिर पेड़ झाँकते हैं और एक चिड़िया चोंच मारकर इसे उड़ेलती है अपने कंठ में मैं इसमें देख सकता हूं अपना चेहरा और पिछले कई दिनों की उदासी के बाद मुसकुरा सकता हूँ यह दुनिया की हर उदास चीज़ को देता है अपनी… Continue reading पानी / एकांत श्रीवास्तव