शब्द-3 / एकांत श्रीवास्तव

जब भी लड़खड़ाता हूँ
गिरने से पहले
मुझे थाम लेते हैं मेरे शब्‍द
दोस्‍तों की तरह लपककर

घर से निकलने के पहले पूछते हैं-
कुछ खाया कि नहीं?
लौटने पर आते हैं
पड़ोसियों की तरह-‘आपकी चिट्ठी’

मेरे शब्‍दों को ढूँढते हैं आतताई
कि इनमें छिपी हैं उनकी साजिशें

शब्‍द पुराने तारों की तरह
बचाकर रखते हैं अपनी मिठास

अन्‍न हैं मेरे शब्‍द
पृथ्‍वी की उर्वरता के आदिम साक्ष्‍य
जन्‍म लेना चाहते हैं बार-बार
संसार को बचाये रखने की
पहली और आखिरी इच्‍छा बनकर|

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