कभी ज़बाँ पे न आया के आरज़ू क्या है ग़रीब दिल पे अजब हसरतों का साया है सबा ने जागती आँखों को चूम चूम लिया न जाने आख़िर-ए-शब इंतिज़ार किस का है ये किस की जलवा-गरी काएनात है मेरी के ख़ाक हो के भी दिल शोला-ए-तमन्ना है तेरी नज़र की बहार-आफ़रीनियाँ तस्लीम मगर ये दिल… Continue reading कभी ज़बाँ पे न आया / ‘अख्तर’ सईद खान
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दिल-ए-शोरीदा की वहशत / ‘अख्तर’ सईद खान
दिल-ए-शोरीदा की वहशत नहीं देखी जाती रोज़ इक सर पे क़यामत नहीं देखी जाती अब उन आँखों में वो अगली सी नदामत भी नहीं अब दिल-ए-ज़ार की हालत नहीं देखी जाती बंद कर दे कोई माज़ी का दरीचा मुझ पर अब इस आईने में सूरत नहीं देखी जाती आप की रंजिश-ए-बे-जा ही बहुत है मुझ… Continue reading दिल-ए-शोरीदा की वहशत / ‘अख्तर’ सईद खान
दिल की राहें ढूँढने / ‘अख्तर’ सईद खान
दिल की राहें ढूँडने जब हम चले हम से आगे दीदा-ए-पुर-नम चले तेज़ झोंका भी है दिल को ना-गवार तुम से मस हो कर हवा कम कम चले थी कभी यूँ क़द्र-ए-दिल इस बज़्म में जैसे हाथों-हाथ जाम-ए-जम चले है वो आरिज़ और उस पर चश्म-ए-पुर-नम गुल पे जैसे क़तरा-ए-शबनम चले आमद-ए-सैलाब का वक़्फ़ा था… Continue reading दिल की राहें ढूँढने / ‘अख्तर’ सईद खान
दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल / ‘अख्तर’ सईद खान
दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल और आप से पर्दा भी क्या इक ज़रा नज़दीक आ कर देखिए ऐसा भी क्या हम भी ना-वाक़िफ़ नहीं आदाब-ए-महफ़िल से मगर चीख़ उठें ख़ामोशियाँ तक ऐसा सन्नाटा भी क्या ख़ुद हमीं जब दस्त-ए-क़ातिल को दुआ देते रहे फिर कोई अपनी सितम-गारी पे शरमाता भी क्या जितने आईने थे सब टूटे हुए… Continue reading दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल / ‘अख्तर’ सईद खान
आज भी दश्त-ए-बला में / ‘अख्तर’ सईद खान
आज भी दश्त-ए-बला में नहर पर पहरा रहा कितनी सदियों बाद मैं आया मगर प्यासा रहा क्या फ़ज़ा-ए-सुब्ह-ए-ख़ंदाँ क्या सवाद-ए-शाम-ए-ग़म जिस तरफ़ देखा किया मैं देर तक हँसता रहा इक सुलगता आशियाँ और बिजलियों की अंजुमन पूछता किस से के मेरे घर में क्या था क्या रहा ज़िंदगी क्या एक सन्नाटा था पिछली रात का… Continue reading आज भी दश्त-ए-बला में / ‘अख्तर’ सईद खान
ओ देस से आने वाले बता! / ‘अख्तर’ शीरानी
ओ देस से आने वाले बता! क्या अब भी वहां के बाग़ों में मस्ताना हवाएँ आती हैं? क्या अब भी वहां के परबत पर घनघोर घटाएँ छाती हैं? क्या अब भी वहां की बरखाएँ वैसे ही दिलों को भाती हैं? ओ देस से आने वाले बता! क्या अब भी वतन में वैसे ही सरमस्त नज़ारे… Continue reading ओ देस से आने वाले बता! / ‘अख्तर’ शीरानी
यारो कू-ए-यार की बातें करें / ‘अख्तर’ शीरानी
यारो कू-ए-यार की बातें करें फिर गुल ओ गुल-ज़ार की बातें करें चाँदनी में ऐ दिल इक इक फूल से अपने गुल-रुख़्सार की बातें करें आँखों आँखों में लुटाए मै-कदे दीदा-ए-सरशार की बातें करें अब तो मिलिए बस लड़ाई हो चुकी अब तो चलिए प्यार की बातें करें फिर महक उट्ठे फ़ज़ा-ए-ज़िंदगी फिर गुल ओ… Continue reading यारो कू-ए-यार की बातें करें / ‘अख्तर’ शीरानी
वो कभी मिल जाएँ तो / ‘अख्तर’ शीरानी
वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए रात दिन सूरत को देखा कीजिए चाँदनी रातों में इक इक फूल को बे-ख़ुदी कहती है सजदा कीजिए जो तमन्ना बर न आए उम्र भर उम्र भर उस की तमन्ना कीजिए इश्क़ की रंगीनियों में डूब कर चाँदनी रातों में रोया कीजिए पूछ बैठे हैं हमारा हाल वो… Continue reading वो कभी मिल जाएँ तो / ‘अख्तर’ शीरानी
वादा उस माह-रू के आने का / ‘अख्तर’ शीरानी
वादा उस माह-रू के आने का ये नसीबा सियाह-ख़ाने का कह रही है निगाह-ए-दुज़-दीदा रुख़ बदलने को है ज़माने का ज़र्रे ज़र्रे में बे-हिजाब हैं वो जिन को दावा है मुँह छुपाने का हासिल-ए-उम्र है शबाब मगर इक यही वक़्त है गँवाने का चाँदनी ख़ामोशी और आख़िर शब आ के है वक़्त दिल लगाने का… Continue reading वादा उस माह-रू के आने का / ‘अख्तर’ शीरानी
कुछ तो तंहाई की रातों में / ‘अख्तर’ शीरानी
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता तर्क-ए-दुनिया का ये दावा है फ़ुज़ूल ऐ ज़ाहिद बार-ए-हस्ती तो ज़रा सर से उतारा होता वो अगर आ न सके मौत ही आई होती हिज्र में कोई तो ग़म-ख़्वार हमारा होता ज़िन्दगी कितनी मुसर्रत से गुज़रती या रब ऐश… Continue reading कुछ तो तंहाई की रातों में / ‘अख्तर’ शीरानी