हमें मार नहीं सका पूरी तरह कोई भी शस्त्र उनका न जला ही सकी हमें कोई आग कोई भी सैलाब डुबो नहीं सका हमें पूरी तरह हमें उड़ा नहीं सकी हवा सूखे पत्तों की तरह हम मर गए छटपटाती आत्मा की अमरता के अभिशाप से यहाँ
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अस्थियाँ / अग्निशेखर
ओ पुरातत्त्ववेत्ता भविष्य, जीवित हो उठेंगी तुम्हारे सामने इन जगहों पर हमारी निष्पाप अस्थियाँ कहेंगी तुमसे बहाओ हमें कश्मीर ले जाकर वितस्ता में उस वक़्त खुल जाएंगी तुम्हारी आँखें जैसे खुलते हैं गूढ़ शब्दों के अर्थ कभी अपने आप इन जगहों पर कुछ मायूस घास उगी होगी एक दूर छूटी याद में सरोबार
लू-2 / अग्निशेखर
इस धूप में पगला गई है मेरी माँ झर गए हैं उसके पत्ते उसकी स्मृतियाँ रहती है दिन भर निर्वस्त्र हो गई है मौन… वेदनाओं से मुक्त किसी पोखर-सी उदासीन लू चल रही है और डाक्टर लिखते हैं एक ही उपचार चिनार की हवा ! क्या करूँ, माँ ! मेरे बस में नहीं है यह… Continue reading लू-2 / अग्निशेखर
लू-1 / अग्निशेखर
तपी हुई धरती पर रखे चिनार से मेरे पिता ने अपने हरे पाँव- हे राम ! राशन, पानी और टैंटो के लिए निकाले गए जुलूस में चलते हुए कहा उन्होंने मेरी जल रही हैं पलकें- मैंने उनके सर पर रख दी गीली रुमाल… पुलिस ने छोड़े आँसू के गोले भाग गए विस्थापित पिता बैठ गए… Continue reading लू-1 / अग्निशेखर
बारिश में पतंग / अग्निशेखर
इस बारिश में कैम्प के पिछवाड़े मुर्दा भैंस के कंकाल में छिपाकर रख आता है एक बच्चा अपनी पतंग तम्बू से उठ गया है उसका विश्वास
कश्मीरी मुसलमान-2 / अग्निशेखर
हमारी एक-दूसरे को सीधे देखने से कतराती हैं आँखें हम एक-दूसरे को नहीं चाहते हैं पहचान पाना इस शहर में दोनों हैं लहुलुहान और पसीने से तर फिर भी ठिठक जाते हैं पाँव कि पूछें, कैसे हो भाई
कश्मीरी मुसलमान-1 / अग्निशेखर
कितना भीग जाता है मेरा मन खुली-खुली पलकों से आकर टकराता है घर मेरा देश पूरा परिवेश खुलती हैं घुमावदार गलियाँ उनमें खेलने लग पड़ता है बचपन बतियाती हैं पड़ोस की अधेड़ महिलाएँ मज़हब से परे होकर एक बूंद आँसू से धुल जाती हैं शिकायतें जलावतनी में जब देखता हूँ किसी भी कश्मीरी मुसलमान को
तसलीमा नसरीन / अग्निशेखर
क्यों सुनी तुमने आत्मा की चीत्कार तुम्हें छोड़ना नहीं पड़ता रगों में बहता सुनहला देश यहाँ कितने लोगों को आई लाज अपनी ख़ामोशी पर मुझे नहीं मिला कोई भी दोस्त जिसने तुम्हारे आत्मघाती प्रेम पर की हो कोई बात मैं हूँ स्वयं भी जलावतन और लज्जित भी कि तुम्हारे लिए कर नहीं सका मैं भी… Continue reading तसलीमा नसरीन / अग्निशेखर
चांद / अग्निशेखर
बादलों के पीछे क़ैद है चांद अंधेरे में डुबकी मार कर आए हैं दिन खुली खिड़कियाँ कर रही हैं बादलों के हटने का इन्तज़ार उमस में स्थगित हैं लोगों के त्यौहार
आस / अग्निशेखर
बूढ़ा बिस्तर पर लेटे आँखों-आँखों नापता है आकाश फटे हुए तम्बू के सुराख़ों से उसकी झुर्रियों में गिर रही है समय की राख चुपचाप घूम रही है सिरहाने के पास घड़ी की सुई उसकी बीत रही है घर लौटने की आस