लू-2 / अग्निशेखर

इस धूप में
पगला गई है मेरी माँ
झर गए हैं उसके पत्ते
उसकी स्मृतियाँ
रहती है दिन भर निर्वस्त्र
हो गई है मौन…
वेदनाओं से मुक्त
किसी पोखर-सी उदासीन

लू चल रही है
और डाक्टर लिखते हैं एक ही उपचार
चिनार की हवा !

क्या करूँ, माँ !
मेरे बस में नहीं है
यह दवा

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