सीना तानकर चलता हूँ दिन-रात गजराज की तरह झूमता हूँ सड़कों पर अपने मित्रों और शत्रुओं के समक्ष दम्भ से भरी रहती है मेरी मुखाकृति–मेरी वाणी अलस्स सवेरे गुज़रता हूँ उस सड़क पर जिसके बाईं ओर शमशान है विनम्र हो जाता हूँ चींटी की तरह आज स्वयं चलकर आया हूँ यहाँ तक कल लाया जाऊंगा… Continue reading कल / आग्नेय
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रतजगा / आग्नेय
मुझे जागते रहना है– एक कथा और सुनाओ ख़त्म हो जाए तो और कथाएँ सुनाओ समुद्र में रहने वाली मछलियों साइबेरिया से आने वाली बत्तखों बब्बर शेर, चालक लोमड़ी, हँसते लकड़बग्घे की कथाएँ परिन्दों, दरख़्तों और जंगलों रेशम बुनते कीड़ों, घड़ियालों ध्रुवों पर जमी बर्फ़, प्राणरक्षक औषधियों और सदाबहार वनस्पतियों की कथाएँ इन सबकी कथाएँ… Continue reading रतजगा / आग्नेय
सम्पूर्णता / आग्नेय
वह आकाश की ओर देखती रही जबकि मैं उसके निकट छाया की तरह लिपटा था, उसका हाथ दूसरी स्त्री के कन्धे पर था, जबकि मैं उसके चारों ओर हवा की तरह ठहरा था, भरी-पूरी स्त्री का भरा-पूरा प्यार अन्तिम इच्छा की तरह जी लेने के लिए मैं उसे हरदम पल्लवित और फलवती पृथ्वी की सम्पूर्णता… Continue reading सम्पूर्णता / आग्नेय
गमन / आग्नेय
फूल के बोझ से टूटती नहीं है टहनी फूल ही अलग कर दिया जाता है टहनी से उसी तरह टूटता है संसार टूटता जाता है संसार– मेरा और तुम्हारा चमत्कार है या अत्याचार है इस टूटते जाने में सिर्फ़ जानता है टहनी से अलग कर दिया गया फूल
ज़र्रा भी अगर रंग-ए-ख़ुदाई नहीं देता / ‘शाएर’ क़ज़लबाश
ज़र्रा भी अगर रंग-ए-ख़ुदाई नहीं देता अंधा है तुझे कुछ भी दिखाई नहीं देता दिल की बुरी आदत है जो मिटता है बुतों पर वल्लाह मैं उन को तो बुराई नहीं देता किस तरह जवानी में चलूँ राह पे नासेह ये उम्र ही ऐसी है सुझाई नहीं देता गिरता है उसी वक़्त बशर मुँह के… Continue reading ज़र्रा भी अगर रंग-ए-ख़ुदाई नहीं देता / ‘शाएर’ क़ज़लबाश
उन्स अपने में कहीं पाया न बे-गाने / ‘शाएर’ क़ज़लबाश
उन्स अपने में कहीं पाया न बे-गाने में था क्या नशा है सारा आलम एक पैमाने में था आह इतनी काविशें ये शोर-ओ-शर ये इज़्तिराब एक चुटकी ख़ाक की दो पर ये परवाने में था आप ही उस ने अनलहक़ कह दिया इलज़ाम क्या होश किस ने ले लिया था होश दीवाने में था अल्लाह… Continue reading उन्स अपने में कहीं पाया न बे-गाने / ‘शाएर’ क़ज़लबाश
रोने से जो भड़ास थी दिल की निकल / ‘शाएर’ क़ज़लबाश
रोने से जो भड़ास थी दिल की निकल गई आँसू बहाए चार तबीअत सँभल गई मैं ने तरस तरस के गुज़ारी है सारी उम्र मेरी न होगी जान जो हसरत निकल गई बे-चैन हूँ मैं जब से नहीं दिल-लगी कहीं वो दर्द क्या गया के मेरे दिल की कल गई कहता है चारा-गर के न… Continue reading रोने से जो भड़ास थी दिल की निकल / ‘शाएर’ क़ज़लबाश
मुझ को आता है तयम्मुम न वज़ू आता / ‘शाएर’ क़ज़लबाश
मुझ को आता है तयम्मुम न वज़ू आता है सजदा कर लेता हूँ जब सामने तू आता है यूँ तो शिकवा भी हमें आईना-रू आता है होंट सिल जाते हैं जब सामने तू आता है हाथ धोए हुए हूँ नीस्ती ओ हस्ती से शैख़ क्या पूछता है मुझ से वज़ू आता है मिन्नतें करती है… Continue reading मुझ को आता है तयम्मुम न वज़ू आता / ‘शाएर’ क़ज़लबाश
जब्र को इख़्तियार कौन करे / ‘शाएर’ क़ज़लबाश
जब्र को इख़्तियार कौन करे तुम से ज़ालिम को प्यार कौन करे ज़िंदगी है हज़ार ग़म का नाम इस समुंदर को पार कौन करे आप का वादा आप का दीदार हश्र तक इंतिज़ार कौन करे अपना दिल अपनी जान का दुश्मन ग़ैर का ऐतबार कौन करे हम जिलाए गए हैं मरने को इस करम की… Continue reading जब्र को इख़्तियार कौन करे / ‘शाएर’ क़ज़लबाश
दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई / ‘शाएर’ क़ज़लबाश
दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई अब क्या है वो उतर गई नद्दी चढ़ी हुई तुम जान दे के लेते हो ये भी नई हुई लेते नहीं सख़ी तो कोई चीज़ दी हुई इस टूटे फूटे दिल को न छेड़ो परे हटो क्या कर रहे हो आग है इस में दबी हुई लो… Continue reading दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई / ‘शाएर’ क़ज़लबाश