तमस / अग्निशेखर

तमस हर तरफ़ खिंचा-पसरा था जैसे खड़ा था सामने एक भयानक रीछ और हम सहमे हुए थे खो गया था सबका दिशाबोध घड़ियों में ज़रूर बज रहा था कुछ पता नहीं कहाँ पर थे उस वक़्त खड़े हम ख़त्म हो जाने के खिलाफ़ मूक किसी भी छोर से सूरज उगने तक हमने बचाई किसी तरह… Continue reading तमस / अग्निशेखर

घास / अग्निशेखर

हर तरफ़ आदमी से ऊँची घास थी घनी और आपस में गुँथी हुई वहीं कहीं थी हमारी पगडंडी जिसे हम खोज रहे थे अंधेरा था मालूम नहीं पड़ रहे थे पैर कहाँ उलझ रहे हैं हमें पहुँचना था अपनों के पास फड़फड़ा रहा था दिल सन्नाटे में झूम रही थी घास उन्हीं कुछ लम्हों से… Continue reading घास / अग्निशेखर

माइकिल एंजिलो की तीसरी बहन / अग्निशेखर

वह झटककर तोड़ती है धागा और बची हुई मनुष्यता को मरने नहीं देती ऎसा नहीं कि तोड़ना उसकी आदत है और अपनी बहनों से बनती नहीं उसकी जिन लोगों ने तीनों बहनों के सामने से गुज़रकर उन्हें आपस में बतियाते हुए देखा है जानते हैं वे उनके आपसी प्रेम को परन्तु यह बहन तोड़ती रहती… Continue reading माइकिल एंजिलो की तीसरी बहन / अग्निशेखर

माइकिल एंजिलो की दूसरी बहन / अग्निशेखर

ओ, धागा नापने में व्यस्त माइकिल एंजिलो की दूसरी बहन तुम्हें ही मालूम है यहाँ किसके उधड़े ज़ख़्मों को सिया नहीं जाना है यह पृथ्वी, आकाश, तारे, पंछी, मौसम, लोग और उनकी आकांक्षाएँ जिस धागे से बँधी हुई हैं तुम ही जानती हो वह कितना कमज़ोर हो चुका है बहन, तुम जानती हो कि किसके… Continue reading माइकिल एंजिलो की दूसरी बहन / अग्निशेखर

माइकिल एंजिलो की पहली बहन / अग्निशेखर

वह कातती है धागा ठहरी हुई चीज़ों के लिए वह कातती है गति दौड़ पड़ते हैं बच्चे उड़ती हैं चिड़ियाँ हरी घास की तरह फैलती है मुस्कान यादें खोलती हैं पंखुड़ियाँ उसके धागे कातने से बजता है समय मैं सुनता हूँ अपने भीतर कातने की आवाज़ जो उतरने लगती है काग़ज़ पर सघन कविता की… Continue reading माइकिल एंजिलो की पहली बहन / अग्निशेखर

तूत के अंगार / अग्निशेखर

जब कविताएँ वजह बनीं मेरे निष्कासन की मैंने और ज़्यादा प्यार किया जोख़िम से अवसाद और विद्रोह के लम्हों में मैंने मारी आग में छलांग और जिया शायर होने की क़ीमत अदा करते हुए मुझ तक आने के रास्ते में बिछे हैं तूत के दहकते अंगार कौन आता नंगे पाँव मेरी वेदना के पास

मरीना स्विताएवा / अग्निशेखर

कवि वरयाम सिंह के लिए मेरी गहरी नींद में उसने टार्च की लम्बी रोशनी फेंकी और मैंने उसे अपने अन्दर गिरती बर्फ़ में पेड़ के नीचे खड़े देखा रात के घने अंधेरे में कहा उसने मैं न तुमसे प्रेम करूंगी और न विवाह मैं बचाना चाहती हूँ तुम्हें ध्वस्त होने से मैंने उसे अपनी माँ… Continue reading मरीना स्विताएवा / अग्निशेखर

थोड़ा-सा प्रकाश / अग्निशेखर

मेरी सोई हुई माँ के चेहरे पर किसीछिद्र से पड़ रहा है थोड़ा-सा प्रकाश हिल रही हैं उसकी पलकें कौन कर रहा है इस अंधेरे में सुबह की बात

तड़प / अग्निशेखर

अरे, मेरा करो अपहरण ले जाओ मुझे अपने यातना-शिविर में कुछ नहीं कहूंगा मैं करो जो कुछ भी करना है मेरे शरीर के साथ ज़िन्दा जलाओ, काटो उआ दफ़न करो कहीं मुझे नदी के किनारे बर्फ़ीले पहाड़ों पर किसी गाँव में या कस्बाई गली में कहीं घूरे के नीचे मैं तरस गया हूँ अपनी ज़मीन… Continue reading तड़प / अग्निशेखर

ज़मीन पर ही रहे आसमाँ के होते हुए / अख़्तर होश्यारपुरी

ज़मीन पर ही रहे आसमाँ के होते हुए कहीं न घर से गए कारवाँ के होते हुए मैं किस का नाम न लूँ और नाम लूँ किस का हज़ारों फूल खिले थे ख़िज़ाँ के होते हुए बदन कि जैसे हवाओं की ज़द में कोई चराग़ ये अपना हाल था इक मेहरबाँ के होते हुए हमें… Continue reading ज़मीन पर ही रहे आसमाँ के होते हुए / अख़्तर होश्यारपुरी