उच्छवासों से / जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’

ऐ उर के जलते उच्छ्वासों जग को ज्वलदांगार बना दो, क्लान्त स्वरों को, शान्त स्वरों को, सबको हाहाकार बना दो, सप्तलोक क्या भुवन चतुर्दश को, फिरकी सा घूर्णित कर दो, गिरि सुमेर के मेरुदण्ड को, कुलिश करों से चूर्णित कर दो, शूर क्रूर इन दोनों ही को, रणशय्या पर शीघ्र सुला दो, इनकी माँ, बेटी,… Continue reading उच्छवासों से / जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’

होता तो वही जो कुछ क़िस्मत में लिखा होता / जगत मोहन लाल ‘रवाँ’

होता तो वही जो कुछ क़िस्मत में लिखा होता तदबीर अगर करता कुछ रंज सिवा होता ऐ फ़लसफ़ा-ए-फ़ितरत कुछ बात न गर होती इस ख़ाक के पुतले को ये हुस्न अता होता अल्लाह की मर्ज़ी में फ़रयाद ये क्या माने जब बस न था कुछ अपना तो सब्र किया होता शर्मिंदा-ए-दरमान क्यूँ ख़ालिक़ ने किया… Continue reading होता तो वही जो कुछ क़िस्मत में लिखा होता / जगत मोहन लाल ‘रवाँ’

गुल-ए-वीराना हूँ कोई नहीं है क़द्र-दाँ मेरा / जगत मोहन लाल ‘रवाँ’

गुल-ए-वीराना हूँ कोई नहीं है क़द्र-दाँ मेरा तू ही देख ऐ मेरे ख़ल्लाक हुस्न-ए-राएगाँ मेरा ये कह कर रूह निकली है तन-ए-आशिक़ से फ़ुर्कत में मुझे उजलत है बढ़ जाए न आगे कारवाँ मेरा हवा उस को उड़ा ले जाए अब या फूँक दे बिजली हिफ़ाजत कर नहीं सकता मेरी जब आशियाँ मेरा ज़मीं पर… Continue reading गुल-ए-वीराना हूँ कोई नहीं है क़द्र-दाँ मेरा / जगत मोहन लाल ‘रवाँ’

बहु पद जोरि-जोरि करि गावहिं / जगजीवन

बहु पद जोरि-जोरि करि गावहिं। साधन कहा सो काटि-कपटिकै, अपन कहा गोहरावहिं॥ निंदा करहिं विवाद जहाँ-तहँ, वक्ता बडे कहावहिं। आपु अंध कछु चेतत नाहीं, औरन अर्थ बतावहिं॥ जो कोउ राम का भजन करत हैं, तेहिकाँ कहि भरमावहिं। माला मुद्रा भेष किये बहु, जग परबोधि पुजावहिं॥ जहँते आये सो सुधि नाहीं, झगरे जन्म गँवावहिं। ‘जगजीवन’ ते… Continue reading बहु पद जोरि-जोरि करि गावहिं / जगजीवन

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यह नगरी महँ परिऊँ भुलाई / जगजीवन

यह नगरी महँ परिऊँ भुलाई। का तकसीर भई धौं मोहि तें, डारे मोर पिय सुधि बिसराई॥ अब तो चेत भयो मोहिं सजनी ढुँढत फिरहुँ मैं गइउँ हिराई। भसम लाय मैं भइऊँ जोगिनियाँ, अब उन बिनु मोहि कछु न सुहाई॥ पाँच पचीस की कानि मोहि है, तातें रहौं मैं लाज लजाई। सुरति सयानप अहै इहै मत,… Continue reading यह नगरी महँ परिऊँ भुलाई / जगजीवन

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अपने ही सजद का है शौक मेरे सर-ए-नियाज़ में / ‘जिगर’ बरेलवी

अपने ही सजद का है शौक मेरे सर-ए-नियाज़ में काबा-ए-दिल है महव हूँ नमाज़ में पिंहाँ है गर ख़ाक डाल दीदा-ए-इम्तियाज़ में जाम ओ ख़म ओ सबू न देख मय-कदा-ए-मजाज़ में किस का फ़रोग-ए-अक्स है कौन महव-ए-नाज़ में कौंद पही हैं बिजलियाँ आईना-ए-मजाज़ में सुब्ह-ए-अज़ल है सुब्ह-ए-हुस्न शाम-ए-अबद है दाग़-ए-इश्‍क़ दिल है मक़ाम-ए-इर्तिबात सिलसिला-ए-दराज़ में… Continue reading अपने ही सजद का है शौक मेरे सर-ए-नियाज़ में / ‘जिगर’ बरेलवी

आह हम हैं और शिकस्ता-पाइयाँ / ‘जिगर’ बरेलवी

आह हम हैं और शिकस्ता-पाइयाँ अब कहाँ वो बादिया-पैमाइयाँ जोश-ए-तूफाँ है न मौंजों का ख़रोश अब लिए है गोद में गहराइयाँ खेलते थे ज़िंदगी ओ मौत से वो शबाब और आह वो कजराइयाँ हम हैं सन्नाटा है और महवियतें रात है और रूह की गहराइयाँ

कॉफ़ी / ‘ज़िया’ ज़मीर

रात घनी हो चुकी है काफ़ी धुंध भी काफ़ी घनी-घनी है लैम्प-पोस्ट कोहरे में लिपटा ख़ामोशी से ऊँघ रहा है तन्हा पहली मंज़िल से वो झाँक रही है खिड़की से कॉफ़ी का मग भरा हुआ है उसकी ख़ातिर जिसको अब तक आ जाना था आठ बजे तक कहा था उसने आठ बजे तक आ जाएगा… Continue reading कॉफ़ी / ‘ज़िया’ ज़मीर

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अजब लड़की है वो लड़की / ‘ज़िया’ ज़मीर

अजब लड़की है वो लड़की हमेशा रूठ जाती है कहा करती है यह मुझसे सुनो जानूँ मौहब्बत ख़ूब कहते हो मगर यह कैसी ज़िद है जुबाँ से कुछ नहीं कहते मुझे लगता है जैसे तुम पज़ीराई के दो जुम्ले जुबाँ पर रखने भर से ही परेशाँ हो से जाते हो या फिर उकता से जाते… Continue reading अजब लड़की है वो लड़की / ‘ज़िया’ ज़मीर

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बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया / ‘ज़हीर’ देहलवी

बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया ले तुझे आज़मा के देख लिया तुम ने मुझ को सता के देख लिया हर तरह आज़मा के देख लिया उन के दिल की कुदूरतें न मिटीं अपनी हस्ती मिटा के देख लिया कुछ नहीं कुछ नहीं मोहब्बत में ख़ूब जी को जला के देख लिया कुछ नहीं जुज़… Continue reading बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया / ‘ज़हीर’ देहलवी