होता तो वही जो कुछ क़िस्मत में लिखा होता / जगत मोहन लाल ‘रवाँ’
होता तो वही जो कुछ क़िस्मत में लिखा होता तदबीर अगर करता कुछ रंज सिवा होता ऐ फ़लसफ़ा-ए-फ़ितरत कुछ बात न गर होती इस ख़ाक के पुतले को ये हुस्न अता होता अल्लाह की मर्ज़ी में फ़रयाद ये क्या माने …