एक बस तू ही नहीं मुझ से ख़फ़ा हो बैठा / फ़रहत शहज़ाद

एक बस तू ही नहीं मुझसे ख़फ़ा हो बैठा मैं ने जो संग तराशा वो ख़ुदा हो बैठा उठ के मंज़िल ही अगर आये तो शायद कुछ हो शौक़-ए-मंज़िल में मेरा आबलापा हो बैठा मसलहत छीन गई क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार मगर कुछ न कहना ही मेरा मेरी सदा हो बैठा शुक्रिया ए मेरे क़ातिल ए मसीहा मेरे… Continue reading एक बस तू ही नहीं मुझ से ख़फ़ा हो बैठा / फ़रहत शहज़ाद

जो कुछ भी है नज़र में सो वहम-ए-नुमूद है / फ़रहत कानपुरी

जो कुछ भी है नज़र में सो वहम-ए-नुमूद है आलम तमाम एक तिलिस्म-ए-वजूद है आराइश-ए-नुमूद से बज़्म-ए-जुमूद है मेरी जबीन-ए-शौक़ दलील-ए-सुजूद है हस्ती का राज़ क्या है ग़म-ए-हस्त-ओ-बूद है आलम तमाम दाम-ए-रूसूम-ओ-क़ुयूद है अक्स-ए-जमाल-ए-यार से वहम-ए-नुमूद है वर्ना वजूद-ए-ख़ल्क भी ख़ुद बे-वजूद है अब कुश्तगान-ए-शौक़ को कुछ भी न चाहिए फ़र्श-ए-ज़मीं है साया-ए-चर्ख़-ए-कबूद है हंगामा-ए-बहार… Continue reading जो कुछ भी है नज़र में सो वहम-ए-नुमूद है / फ़रहत कानपुरी

आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर / फ़रहत कानपुरी

आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर दिल ही मे न रह जाओ आँखों से निहाँ हो कर हाँ लब पे भी आ जाओ अंदाज़-ए-बयाँ हो कर आँखों में भी आ जाओ अब दिल की ज़बाँ हो कर खुल जाओ कभी मुझे से मिल जाओ कभी मुझ को रहते हो मिरे दिल… Continue reading आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर / फ़रहत कानपुरी

इधर भी देख ज़रा बे-क़रार हम भी हैं / फ़ज़ल हुसैन साबिर

इधर भी देख ज़रा बे-क़रार हम भी हैं तिरे फ़िदाई तिरे जाँ-निसार हम भी हैं बुतो हक़ीर न समझो हमें ख़ुदा के लिए ग़रीब बाँदा-ए-परवर-दिगार हम भी हैं कहाँ की तौबा ये मौक़ा है फूल उड़ाने का चमन है अब है साक़ी है यार हम भी हैं मिसाल-ए-ग़ुंचा उधर ख़ंदा-ज़न है वो गुल-ए-तर मिसाल-ए-अब्र इधर… Continue reading इधर भी देख ज़रा बे-क़रार हम भी हैं / फ़ज़ल हुसैन साबिर

है जो ख़ामोश बुत-ए-होश-रूबा मेरे बाद / फ़ज़ल हुसैन साबिर

है जो ख़ामोश बुत-ए-होश-रूबा मेरे बाद गुल खिलाएगा कोई और नया मेरे बाद तू जफ़ाओं से जो बदनाम किए जाता है याद आएगी तुझे मेरी वफ़ा मेरे बाद कोई शिकवा हो सितमगार तो ज़ाहिर कर दे फिर न करना तू कभी कोई गिला मेरे बाद इबरत-अंगेज़ है अफ़्साना मिरे मरने का रूक गए हैं क़दम-ए-उम्र-ए-बक़ा… Continue reading है जो ख़ामोश बुत-ए-होश-रूबा मेरे बाद / फ़ज़ल हुसैन साबिर

इस कमरे में ख़्वाब रक्खे थे कौन यहाँ पर आया था / फ़ज़ल ताबिश

इस कमरे में ख़्वाब रक्खे थे कौन यहाँ पर आया था गुम-सुम रौशन-दानो बोलो क्या तुम ने कुछ देखा था अँधे घर में हर जानिब से बद-रूहों की यूरिश थी बिजली जलने से पहले तक वो सब थीं मैं तनहा था मुझ से चौथी बेंच के ऊपर कल शब जो दो साए थे जाने क्यूँ… Continue reading इस कमरे में ख़्वाब रक्खे थे कौन यहाँ पर आया था / फ़ज़ल ताबिश

हर इक दरवाज़ा मुझ पर बंद होता / फ़ज़ल ताबिश

हर इक दरवाज़ा मुझ पर बंद होता अँधेरा जिस्म में नाख़ून होता ये सूरज क्यूँ भटकता फिर रहा है मेरे अंदर उतर जाता तो सोता हर इक शय ख़ून में डूबी हुई है कोई इस तरह से पैदा न होता बस अब इक़रार को ओढ़ो बिछाओ न होते ख़्वार जो इंकार होता सलीबों में टंगे… Continue reading हर इक दरवाज़ा मुझ पर बंद होता / फ़ज़ल ताबिश

बानर जी / लल्लीप्रसाद पांडेय

आँखों पर चश्मा है सुंदर, सिर पर गांधी टोपी है, और गले में पड़ा दुपट्टा, निकली बाहर चोटी है। टेबिल लगा बैठ कुरसी पर, लिखते हैं बानर जी लेख, करते हैं कविता का कौशल, रहती जिसमें मीन न मेख। तुकबंदी प्रति मास सुनाते, लिखते लेख विचार-विचार, कथा-कहानी और पहेली, करते नई-नई तैयार। रंग-बिरंगे चित्र दिखाते,… Continue reading बानर जी / लल्लीप्रसाद पांडेय

नदी की धार चट्टानों पे, जब आकर झरी होगी / ललित मोहन त्रिवेदी

नदी की धार चट्टानों पे जब आकर झरी होगी ! तभी से आदमी ने बाँध की साज़िश रची होगी !! तुझे देवी बनाया और पत्थर कर दिया तुझको ! तरेगी भी अहिल्या तो चरण रज़ राम की होगी !! मरुस्थल में तुम्हारा हाल तो उस बूँद जैसा है ! जिसे गुल पी गए होंगे जो… Continue reading नदी की धार चट्टानों पे, जब आकर झरी होगी / ललित मोहन त्रिवेदी

आईना भी मुझे बरगलाता रहा / ललित मोहन त्रिवेदी

ग़ज़ल आईना भी मुझे , बरगलाता रहा ! दाहिने को वो बाँया दिखाता रहा !! दुश्मनी की अदा देखिये तो सही ! करके एहसान, हरदम जताता रहा !! तार खींचा औ ‘ फिर छोड़कर,चल दिया ! मैं बरस दर बरस झनझनाता रहा !! उसने कोई शिकायत कभी भी न की ! इस तरह से मुझे… Continue reading आईना भी मुझे बरगलाता रहा / ललित मोहन त्रिवेदी