इस कमरे में ख़्वाब रक्खे थे कौन यहाँ पर आया था / फ़ज़ल ताबिश

इस कमरे में ख़्वाब रक्खे थे कौन यहाँ पर आया था गुम-सुम रौशन-दानो बोलो क्या तुम ने कुछ देखा था अँधे घर में हर जानिब से बद-रूहों की यूरिश थी बिजली जलने से पहले तक वो सब थीं मैं तनहा था मुझ से चौथी बेंच के ऊपर कल शब जो दो साए थे जाने क्यूँ… Continue reading इस कमरे में ख़्वाब रक्खे थे कौन यहाँ पर आया था / फ़ज़ल ताबिश

हर इक दरवाज़ा मुझ पर बंद होता / फ़ज़ल ताबिश

हर इक दरवाज़ा मुझ पर बंद होता अँधेरा जिस्म में नाख़ून होता ये सूरज क्यूँ भटकता फिर रहा है मेरे अंदर उतर जाता तो सोता हर इक शय ख़ून में डूबी हुई है कोई इस तरह से पैदा न होता बस अब इक़रार को ओढ़ो बिछाओ न होते ख़्वार जो इंकार होता सलीबों में टंगे… Continue reading हर इक दरवाज़ा मुझ पर बंद होता / फ़ज़ल ताबिश