कैसी होगी तेरी रात परदेस में / इकराम राजस्थानी

कैसी होगी तेरी रात परदेस में, चाँद पूछेगा हालात परदेस में। ख्व़ाब बनकर निगाहों में आ जाएँगे, हम करेंगे, मुलाकाल परदेस में। बादलों से कहेंगे कि कर दे वहाँ, आँसुओं की ये बरसात परदेस में। रंग चेहरे पे लब पे हँसी दिल को चैन, कौन देगा ये सौग़ात परदेस में। तुमको महसूस होती नहीं जो… Continue reading कैसी होगी तेरी रात परदेस में / इकराम राजस्थानी

असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा / इक़बाल सुहैल

असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा अभी दीवार-ए-ज़िंदाँ में हुआ जाता है दर पैदा किए हैं चाक-ए-दिल से बू-ए-गुल ने बाल ओ पर पैदा हवस है ज़िंदगानी की तो ज़ौक-ए-मर्ग कर पैदा ये मुश्त-ए-ख़ाक अगर कर ले पर-ओ-बाल-ए-नज़र पैदा तो औज-ए-ला-मकाँ तक हों हज़ारों रह-गुज़र पैदा जमाल-ए-दोस्त पिंहाँ पर्दा-ए-शम्स-ओ-क़मर पैदा यही पर्दे… Continue reading असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा / इक़बाल सुहैल

अब दिल को हम ने बंदा-ए-जानाँ बना दिया / इक़बाल सुहैल

अब दिल को हम ने बंदा-ए-जानाँ बना दिया इक काफ़िर-ए-अज़ल को मुसलमाँ बना दिया दुश्वारियों को इश्क़ ने आसाँ बना दिया ग़म को सुरूर दर्द को दरमाँ बना दिया इस जाँ-फ़ज़ा इताब के क़ुर्बान जाइए अबरू की हर शिकन को रग-ए-जाँ बना दिया बर्क़-ए-जमाल-ए-यार ये जलवा है या हिजाब चश्म-ए-अदा-शनास को हैराँ बना दिया ऐ… Continue reading अब दिल को हम ने बंदा-ए-जानाँ बना दिया / इक़बाल सुहैल

वह बोल रही है / फ़रीद खान

वह अब बड़ी हो गई है । मैं उसकी उम्र की बात नहीं कर रहा । वह देश के चार-पाँच बड़े शहर घूम कर आई है । मानो उसने अभी-अभी चलना सीखा और दौड़ रही है । मानो उसने अभी-अभी भाषा सीखी और बोल रही उसकी तस्वीरों के शोर से समझ में आ रहा है… Continue reading वह बोल रही है / फ़रीद खान

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मेरा ईश्वर / फ़रीद खान

मेरा और मेरे ईश्वर का जन्म एक साथ हुआ था । हम घरौन्दे बनाते थे, रेत में हम सुरंग बनाते थे । वह मुझे धर्म बताता है, उसकी बात मानता हूँ, कभी कभी नहीं मानता हूँ । भीड़ भरे इलाक़े में वह मेरी तावीज़ में सो जाता है, पर अकेले में मुझे सम्भाल कर घर… Continue reading मेरा ईश्वर / फ़रीद खान

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सच बोले कौन? कोई भी अब मिल नहीं रहा / फ़रीद क़मर

सच बोले कौन? कोई भी अब मिल नहीं रहा कोई दिया हवा के मुक़ाबिल नहीं रहा इक तेरे ग़म का बोझ उठाया था दिल ने बस फिर कोई ग़म ज़माने का मुश्किल नहीं रहा तुझसे भी दिलफरेब थे दुनिया के ग़म मगर मैं तेरी याद से कभी ग़ाफ़िल नहीं रहा तेरे बग़ैर जैसे ये गुज़री… Continue reading सच बोले कौन? कोई भी अब मिल नहीं रहा / फ़रीद क़मर

हमने समझा था कि बस इक कर्बला है ज़िन्दगी / फ़रीद क़मर

हमने समझा था कि बस इक कर्बला है ज़िन्दगी कर्बलाओं का मुसलसल सिलसिला है ज़िन्दगी एक तेरे ग़म ने सब ज़ख्मों पे मरहम कर दिया सब ये कहते थे कि दर्दे-ला-दवा है ज़िन्दगी मुश्किलों से हार जाना इस को आता ही नहीं शब् की तारीकी से लड़ता इक दिया है ज़िन्दगी जीने वालों के लिए… Continue reading हमने समझा था कि बस इक कर्बला है ज़िन्दगी / फ़रीद क़मर

हमारे साथ उम्मीद-ए-बहार तुम भी करो / फ़राग़ रोहवी

हमारे साथ उम्मीद-ए-बहार तुम भी करो इस इंतिज़ार के दरिया को पार तुम भी करो हवा का रूख़ तो किसी पल बदल भी सकता है उस एक पल का ज़रा इंतिज़ार तुम भी करो मैं एक जुगनू अंधेरा मिटाने निकला हूँ रिदा-ए-तीरा-शबी तार तार तुम भी करो तुम्हारा चेहरा तुम्हीं हू-ब-हू दिखाऊँगा मैं आईना हूँ… Continue reading हमारे साथ उम्मीद-ए-बहार तुम भी करो / फ़राग़ रोहवी

देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा / फ़राग़ रोहवी

देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा ख़ुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा उस का जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा अपना सा वो लगा तो मुझे सोचना पड़ा मुझ को था ये गुमाँ कि मुझी में है इक अना देखी तिरी अना तो मुझे सोचना पड़ा दुनिया समझ रही थी… Continue reading देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा / फ़राग़ रोहवी

कोंपले फिर फूट आईं शाख़ पर कहना उसे / फ़रहत शहज़ाद

कोंपलें फिर फूट आँई शाख पर कहना उसे वो न समझा है न समझेगा मगर कहना उसे वक़्त का तूफ़ान हर इक शय बहा के ले गया कितनी तनहा हो गयी है रहगुज़र कहना उसे जा रहा है छोड़ कर तनहा मुझे जिसके लिए चैन न दे पायेगा वो सीमज़र कहना उसे रिस रहा हो… Continue reading कोंपले फिर फूट आईं शाख़ पर कहना उसे / फ़रहत शहज़ाद