असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा / इक़बाल सुहैल

असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा अभी दीवार-ए-ज़िंदाँ में हुआ जाता है दर पैदा किए हैं चाक-ए-दिल से बू-ए-गुल ने बाल ओ पर पैदा हवस है ज़िंदगानी की तो ज़ौक-ए-मर्ग कर पैदा ये मुश्त-ए-ख़ाक अगर कर ले पर-ओ-बाल-ए-नज़र पैदा तो औज-ए-ला-मकाँ तक हों हज़ारों रह-गुज़र पैदा जमाल-ए-दोस्त पिंहाँ पर्दा-ए-शम्स-ओ-क़मर पैदा यही पर्दे… Continue reading असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा / इक़बाल सुहैल

अब दिल को हम ने बंदा-ए-जानाँ बना दिया / इक़बाल सुहैल

अब दिल को हम ने बंदा-ए-जानाँ बना दिया इक काफ़िर-ए-अज़ल को मुसलमाँ बना दिया दुश्वारियों को इश्क़ ने आसाँ बना दिया ग़म को सुरूर दर्द को दरमाँ बना दिया इस जाँ-फ़ज़ा इताब के क़ुर्बान जाइए अबरू की हर शिकन को रग-ए-जाँ बना दिया बर्क़-ए-जमाल-ए-यार ये जलवा है या हिजाब चश्म-ए-अदा-शनास को हैराँ बना दिया ऐ… Continue reading अब दिल को हम ने बंदा-ए-जानाँ बना दिया / इक़बाल सुहैल