बेखुदी ले गयी / मीर तक़ी ‘मीर’

बेखुदी ले गयी कहाँ हम को देर से इंतज़ार है अपना रोते फिरते हैं सारी-सारी रात अब यही रोज़गार है अपना दे के दिल हम जो हो गए मजबूर इस में क्या इख्तियार है अपना कुछ नही हम मिसाले-अनका लेक शहर-शहर इश्तेहार है अपना जिस को तुम आसमान कहते हो सो दिलों का गुबार है… Continue reading बेखुदी ले गयी / मीर तक़ी ‘मीर’

कहा मैंने / मीर तक़ी ‘मीर’

कहा मैंने कितना है गुल का सबात कली ने यह सुनकर तब्बसुम किया जिगर ही में एक क़तरा खूं है सरकश पलक तक गया तो तलातुम किया किसू वक्त पाते नहीं घर उसे बहुत ‘मीर’ ने आप को गम किया

आए हैं मीर मुँह को बनाए / मीर तक़ी ‘मीर’

आए हैं मीर मुँह को बनाए जफ़ा से आज शायद बिगड़ गयी है उस बेवफा से आज जीने में इख्तियार नहीं वरना हमनशीं हम चाहते हैं मौत तो अपने खुदा से आज साक़ी टुक एक मौसम-ए-गुल की तरफ़ भी देख टपका पड़े है रंग चमन में हवा से आज था जी में उससे मिलिए तो… Continue reading आए हैं मीर मुँह को बनाए / मीर तक़ी ‘मीर’

सोचेंगे कैसे आग पे पानी को छोड़कर / माधव मधुकर

सोचेंगे कैसे आग पे पानी को छोड़कर, हम देखते हैं चीज़ों को चीज़ों से जोड़कर । क्यों ज़िन्दगी का बाग़ न सरसब्ज़ हो सका, हमने तो दे दिया है लहू तक निचोड़कर । कैसा हुआ विकास कि जब आज भी किसान, तक़ता है आसमान को खेतों को गोड़कर । निर्माण किया करते हैं जो रास्ते… Continue reading सोचेंगे कैसे आग पे पानी को छोड़कर / माधव मधुकर

ज़मीं को रख सकोगे यूँ बचाकर / माधव मधुकर

ज़मीं को रख सकोगे यूँ बचाकर, समुन्दर को नदी कर दो घटाकर । शरारे हैं, ये भड़केंगे यक़ीनन, कहाँ तक रख सकोगे तुम दबाकर । जो बातें अम्न की आए थे करने, गए वो जंग का जज़्बा जगाकर । लहू है, खोल देगा भेद सारा, न निकलो तुम हथेली पर रचाकर । समय एक दिन… Continue reading ज़मीं को रख सकोगे यूँ बचाकर / माधव मधुकर

साँस क्यों रुकने लगी है / माधव मधुकर

आ गया है वक़्त अब ये देखने का आस की हर साँस क्यों रुकने लगी है ? बैठकर कुछ देर अपने साथ सोचें पीर क्यों हर आँख में दिखने लगी है ? ज़िन्दगी के सीप के मोती कहाँ हैं ? आस के मस्तूल क्यों टूटे हुए हैं हिरनियों की आँख क्यों छलकी हुई है तितलियों… Continue reading साँस क्यों रुकने लगी है / माधव मधुकर

कोकिल / महावीर प्रसाद द्विवेदी

कोकिल अति सुंदर चिड़िया है, सच कहते हैं, अति बढ़िया है। जिस रंगत के कुँवर कन्हाई, उसने भी वह रंगत पाई। बौरों की सुगंध की भाँती, कुहू-कुहू यह सब दिन गाती। मन प्रसन्न होता है सुनकर, इसके मीठे बोल मनोहर। मीठी तान कान में ऐसे, आती है वंशी-धुनि जैसे। सिर ऊँचा कर मुख खोलै है,… Continue reading कोकिल / महावीर प्रसाद द्विवेदी

भारतवर्ष / महावीर प्रसाद द्विवेदी

जै जै प्यारे देश हमारे, तीन लोक में सबसे न्यारे । हिमगिरी-मुकुट मनोहर धारे, जै जै सुभग सुवेश ।। जै जै भारत देश ।।१।। हम बुलबुल तू गुल है प्यारा, तू सुम्बुल, तू देश हमारा । हमने तन-मन तुझ पर वारा, तेजः पुंज-विशेष ।। जै जै भारत देश ।।२।। तुझ पर हम निसार हो जावें,… Continue reading भारतवर्ष / महावीर प्रसाद द्विवेदी

आर्य-भूमि / महावीर प्रसाद द्विवेदी

1 जहाँ हुए व्यास मुनि-प्रधान, रामादि राजा अति कीर्तिमान। जो थी जगत्पूजित धन्य-भूमि , वही हमारी यह आर्य्य-भूमि ।। 2 जहाँ हुए साधु हा महान् थे लोग सारे धन-धर्म्मवान्। जो थी जगत्पूजित धर्म्म-भूमि, वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। 3 जहाँ सभी थे निज धर्म्म धारी, स्वदेश का भी अभिमान भारी । जो थी जगत्पूजित पूज्य-भूमि, वही… Continue reading आर्य-भूमि / महावीर प्रसाद द्विवेदी

साकेत / मैथिलीशरण गुप्त / नवम सर्ग / पृष्ठ २

आई थी सखि, मैं यहाँ लेकर हर्षोच्छवास, जाऊँगी कैसे भला देकर यह निःश्वास? कहाँ जायँगे प्राण ये लेकर इतना ताप? प्रिय के फिरने पर इन्हें फिरना होगा आप। साल रही सखि, माँ की झाँकी वह चित्रकूट की मुझको, बोलीं जब वे मुझसे– ’मिला न वन ही न गेह ही तुझको!’ जात तथा जमाता समान ही… Continue reading साकेत / मैथिलीशरण गुप्त / नवम सर्ग / पृष्ठ २