मुँह तका ही करे है जिस-तिस का / मीर तक़ी ‘मीर’

मुँह तका ही करे है जिस-तिस का हैरती है ये आईना किस का जाने क्या गुल खिलाएगी गुल-रुत ज़र्द चेह्रा है डर से नर्गिस का शाम ही से बुझा-सा रहता है दिल हो गोया चराग़ मुफ़लिस का आँख बे-इख़्तियार भर आई हिज्र सीने में जब तेरा सिसका थे बुरे मुगाबचो के तेवर लेक शैख़ मयखाने… Continue reading मुँह तका ही करे है जिस-तिस का / मीर तक़ी ‘मीर’

मिलो इन दिनों हमसे इक रात जानी / मीर तक़ी ‘मीर’

मिलो इन दिनों हमसे इक रात जानी कहाँ हम, कहाँ तुम, कहाँ फिर जवानी शिकायत करूँ हूँ तो सोने लगे है मेरी सर-गुज़िश्त अब हुई है कहानी अदा खींच सकता है बहज़ाद उस की खींचे सूरत ऐसी तो ये हमने मानी मुलाक़ात होती है तो है कश-म-कश से यही हम से है जब न तब… Continue reading मिलो इन दिनों हमसे इक रात जानी / मीर तक़ी ‘मीर’

मानिंद-ए-शमा मजलिस-ए-शब अश्कबार पाया / मीर तक़ी ‘मीर’

मानिंद-ए-शमा मजलिस-ए-शब अश्कबार पाया अल क़िस्सा ‘मीर’ को हमने बेइख़्तियार पाया शहर-ए-दिल एक मुद्दत उजड़ा बसा ग़मों में आख़िर उजाड़ देना उसका क़रार पाया इतना न दिल से मिलते न दिल को खो के रहते जैसा किया था हमने वैसा ही यार पाया क्या ऐतबार याँ का फिर उस को ख़ार देखा जिसने जहाँ में… Continue reading मानिंद-ए-शमा मजलिस-ए-शब अश्कबार पाया / मीर तक़ी ‘मीर’

काबे में जाँबलब थे हम दूरी-ए-बुताँ से / मीर तक़ी ‘मीर’

काबे में जाँबलब थे हम दूरी-ए-बुताँ से आये हैं फिर के यारों अब के ख़ुदा के याँ से जब कौंधती है बिजली तब जानिब-ए-गुलिस्ताँ रखती है छेड़ मेरे ख़ाशाक-ए-आशियाँ से क्या ख़ूबी उस के मूँह की ए ग़ुन्चा नक़्ल करिये तू तो न बोल ज़ालिम बू आती है वहाँ से ख़ामोशी में ही हम ने… Continue reading काबे में जाँबलब थे हम दूरी-ए-बुताँ से / मीर तक़ी ‘मीर’

जो तू ही सनम हम से बेज़ार होगा / मीर तक़ी ‘मीर’

जो तू ही सनम हम से बेज़ार होगा तो जीना हमें अपना दुशवार होगा ग़म-ए-हिज्र रखेगा बेताब दिल को हमें कुढ़ते-कुढ़ते कुछ आज़ार होगा जो अफ़्रात-ए-उल्फ़त है ऐसा तो आशिक़ कोई दिन में बरसों का बिमार होगा उचटती मुलाक़ात कब तक रहेगी कभू तो तह-ए-दिल से भी यार होगा तुझे देख कर लग गया दिल… Continue reading जो तू ही सनम हम से बेज़ार होगा / मीर तक़ी ‘मीर’

इस अहद में इलाही मोहब्बत को क्या हुआ / मीर तक़ी ‘मीर’

इस अहद में इलाही मोहब्बत् को क्या हुआ छोड़ा वफ़ा को उन्ने मुरव्वत को क्या हुआ उम्मीदवार वादा-ए-दीदार मर चले आते ही आते यारों क़यामत को क्या हुआ बक्शिश ने मुझ को अब्र-ए-करम की किया ख़िजल ए चश्म-ए-जोश अश्क-ए-नदामत को क्या हुआ जाता है यार तेग़ बकफ़ ग़ैर की तरफ़ ए कुश्ता-ए-सितम तेरी ग़ैरत को… Continue reading इस अहद में इलाही मोहब्बत को क्या हुआ / मीर तक़ी ‘मीर’

होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात / मीर तक़ी ‘मीर’

होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात पर हम से तो थमी न कभू मुँह पे आई बात कहते थे उस से मिलते तो क्या-क्या न कहते लेक वो आ गया तो सामने उस के न आई बात बुलबुल के बोलने में सब अंदाज़ हैं मेरे पोशीदा क्या रही है किसु की उड़ाई बात… Continue reading होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात / मीर तक़ी ‘मीर’

गुल को महबूब में क़यास किया / मीर तक़ी ‘मीर’

गुल को महबूब में क़यास किया फ़र्क़ निकला बहोत जो बास किया दिल ने हम को मिसाल-ए-आईना एक आलम से रू-शिनास किया कुछ नहीं सूझता हमें उस बिन शौक़ ने हम को बे-हवास किया सुबह तक शमा सर को ढुँढती रही क्या पतंगे ने इल्तेमास किया ऐसे वहाशी कहाँ हैं अए ख़ुबाँ ‘मीर’ को तुम… Continue reading गुल को महबूब में क़यास किया / मीर तक़ी ‘मीर’

दम-ए-सुबह बज़्म-ए-ख़ुश जहाँ शब-ए-ग़म / मीर तक़ी ‘मीर’

दम-ए-सुबह बज़्म-ए-ख़ुश जहाँ शब-ए-ग़म से कम न थी मेहरबाँ कि चिराग़ था सो तो दर्द था जो पतंग था सो ग़ुबार था दिल-ए-ख़स्ता जो लहू हो गया तो भला हुआ कि कहाँ तलक कभी सोज़्-ए-सीना से दाग़ था कभी दर्द-ओ-ग़म से फ़िग़ार था दिल-ए-मुज़तरिब से गुज़र गई शब-ए-वस्ल अपनी ही फ़िक्र मे न दिमाग़ था… Continue reading दम-ए-सुबह बज़्म-ए-ख़ुश जहाँ शब-ए-ग़म / मीर तक़ी ‘मीर’

दिल की बात कही नहीं जाती, चुप के रहना ठाना है / मीर तक़ी ‘मीर’

दिल की बात कही नहीं जाती, चुप के रहना ठाना है हाल अगर है ऐसा ही तो जी से जाना जाना है सुर्ख़ कभू है आँसू होती ज़र्द् कभू है मूँह मेरा क्या क्या रंग मोहब्बत के हैं, ये भी एक ज़माना है फ़ुर्सत है यां कम रहने की, बात नहीं कुछ कहने की आँखें… Continue reading दिल की बात कही नहीं जाती, चुप के रहना ठाना है / मीर तक़ी ‘मीर’